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________________ सूयगडो १ १६४ श्लोक २ : ५. निपुण (सुमेण ) चूर्णिकार ने सूक्ष्म का अर्थ 'निपुण' किया है। उपाय का अध्याहार करने पर इसका अर्थ होता है— सूक्ष्म उपाय के द्वारा । वृत्तिकार का अर्थ भिन्न है। उनके अनुसार यह 'छष्णपण' का विशेषण है और इसका अर्थ है - बहाना कर । ६. गूढ़ वाच्यवाले पदों का (छण्णप एण) पूर्णिकार ने पद के दो अर्थ किए है १. अन्यापदेश - दूसरे के मिष से अपनी बात कहना । २. गुप्तपदों और संकेतों के द्वारा अपना आन्तरिक भाव प्रगट करना । वृत्तिकार को भी ये दोनों अर्थ मान्य हैं। चूर्णि और वृत्ति में इन दोनों को उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया है funga चाइकिङगा लुकिया य सयणकिडगा व एते जोम्बणकिङगा पयन्नपई महिलिया ॥ स्त्रियां पुत्र, भाई, पौत्र या घेवता तथा स्वजन आदि संबंधों के बहाने उनके साथ प्रच्छन्न क्रीड़ा करती हैं । वे लोगों को दूसरा संबंध बताती हैं और उस पुरुष के साथ दूसरा संबंध रखती हैं यह अन्यापदेश का उदाहरण है । अध्ययन ४ टिप्पण १८ 4. 'काने प्रगुप्तस्य जनार्दनस्य मेघान्धकारासु च सर्वरी मिथ्या न भाषामि विशालनेत्रे! ते प्रत्यया ये प्रथमाक्षरेषु ॥' इस श्लोक के चारों चरणों के प्रथम अक्षरों- 'कामेमि ते ' मैं तुम्हारी कामना करती हूं के द्वारा स्त्री ने अपनी भावना व्यक्त की है । यह गूढ़पद का उदाहरण है । (ख) वृत्ति, पत्र १०५ । ७. पास आती है (परक्कम्म) इसका अर्थ है - निकट आकर । वृत्तिकार ने वैकल्पिक रूप से इसका अर्थ इस प्रकार किया है— अपने शील को संदित करने की योग्यता से मुनि को अभिभूत कर । श्लोक ३ : ८. अत्यन्त (भिसं ) इसको स्पष्ट करने के लिए चूर्णिकार और वृत्तिकार ने लिखा है कि वे स्त्रियां मुनि के ऊरु से ऊरु सटाकर आधे आसन १. चूणि, पृष्ठ १०३ : सुनेनेति निपुणेन, उपायेनेति वाक्यशेषः । २. यति पत्र १०५ सूक्ष्मेण अपरकार्यव्यपदेशमतेन पदेनेति । Jain Education International ३. चूर्ण, पृ० १०३ : छग्नपदेनेति अन्यापदेशेन ...अथवा छन्नपदेनेति छन्नतरैरभिधानैराकारैश्चैनं अभिसर्पति । वृत्ति, - ४. पत्र १०५ ... - नपचेनेति घना कपटजालेन पविया धन्नपवेनेति गुप्ताभिधानेन । १०३ । ५. (क) चूर्णि, पृ० ६. चूर्ण, पृ० १०३ : परक्कम्म त्ति पराक्रम्य अभ्यासमेत्य । ७. वृति पत्र १०५ पराक्रम्य तत्समीपमागत्य यदिवा पराक्रम्येति शीलनयोग्यतापत्या अभिभू For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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