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सूयगडो १
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श्लोक २ :
५. निपुण (सुमेण )
चूर्णिकार ने सूक्ष्म का अर्थ 'निपुण' किया है। उपाय का अध्याहार करने पर इसका अर्थ होता है— सूक्ष्म उपाय
के द्वारा ।
वृत्तिकार का अर्थ भिन्न है। उनके अनुसार यह 'छष्णपण' का विशेषण है और इसका अर्थ है - बहाना कर ।
६. गूढ़ वाच्यवाले पदों का (छण्णप एण)
पूर्णिकार ने पद के दो अर्थ किए है
१. अन्यापदेश - दूसरे के मिष से अपनी बात कहना ।
२. गुप्तपदों और संकेतों के द्वारा अपना आन्तरिक भाव प्रगट करना ।
वृत्तिकार को भी ये दोनों अर्थ मान्य हैं। चूर्णि और वृत्ति में इन दोनों को उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया है
funga चाइकिङगा लुकिया य सयणकिडगा व एते जोम्बणकिङगा पयन्नपई महिलिया ॥
स्त्रियां पुत्र, भाई, पौत्र या घेवता तथा स्वजन आदि संबंधों के बहाने उनके साथ प्रच्छन्न क्रीड़ा करती हैं । वे लोगों को दूसरा संबंध बताती हैं और उस पुरुष के साथ दूसरा संबंध रखती हैं यह अन्यापदेश का उदाहरण है ।
अध्ययन ४ टिप्पण १८
4.
'काने प्रगुप्तस्य जनार्दनस्य मेघान्धकारासु च सर्वरी
मिथ्या न भाषामि विशालनेत्रे! ते प्रत्यया ये प्रथमाक्षरेषु ॥'
इस श्लोक के चारों चरणों के प्रथम अक्षरों- 'कामेमि ते ' मैं तुम्हारी कामना करती हूं के द्वारा स्त्री ने अपनी भावना व्यक्त की है ।
यह गूढ़पद का उदाहरण है ।
(ख) वृत्ति, पत्र १०५ ।
७. पास आती है (परक्कम्म)
इसका अर्थ है - निकट आकर । वृत्तिकार ने वैकल्पिक रूप से इसका अर्थ इस प्रकार किया है— अपने शील को संदित करने की योग्यता से मुनि को अभिभूत कर ।
श्लोक ३ :
८. अत्यन्त (भिसं )
इसको स्पष्ट करने के लिए चूर्णिकार और वृत्तिकार ने लिखा है कि वे स्त्रियां मुनि के ऊरु से ऊरु सटाकर आधे आसन १. चूणि, पृष्ठ १०३ : सुनेनेति निपुणेन, उपायेनेति वाक्यशेषः ।
२. यति पत्र १०५ सूक्ष्मेण अपरकार्यव्यपदेशमतेन
पदेनेति ।
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३. चूर्ण, पृ० १०३ : छग्नपदेनेति अन्यापदेशेन ...अथवा छन्नपदेनेति छन्नतरैरभिधानैराकारैश्चैनं अभिसर्पति ।
वृत्ति, - ४. पत्र १०५
... -
नपचेनेति घना कपटजालेन पविया धन्नपवेनेति गुप्ताभिधानेन । १०३ ।
५. (क) चूर्णि, पृ०
६. चूर्ण, पृ० १०३ : परक्कम्म त्ति पराक्रम्य अभ्यासमेत्य ।
७. वृति पत्र १०५
पराक्रम्य तत्समीपमागत्य यदिवा पराक्रम्येति शीलनयोग्यतापत्या अभिभू
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