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सूयगडो १
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अध्ययन ४ : प्रामुख
६. गुण - पुरुष - पुरुष के चार गुण होते हैं - व्यायाम, विक्रम, वीर्य और सत्त्व । इन गुणों से युक्त पुरुष गुण- पुरुष कहलाता है । वृत्तिकार ने 'वीर्य' गुण के स्थान पर 'धैर्य' गुण माना है।'
१०. भाव- पुरुष -- वर्तमान में 'पुरुष वेदनीय' कर्म को भोगने वाला ।
बल तीन प्रकार का होता है
१. बुद्धिबल
२. शारीरिक बल
२. तपोवन
जो व्यक्ति इन बलों से युक्त होते हैं, वे भी स्त्री के वश होकर नष्ट हो जाते हैं । उनका शौर्य शून्य हो जाता है। प्रसंग में निर्मुक्तिकार ने तीनों बलों के तीन दृष्टान्त प्रस्तुत किए हैं
(क) अभयकुमार वृद्धि का धनी
(ख) चंडपद्योत -- शरीरबल का धनी ।
(ग) कुलबाल - तपोबल का धनी । *
अभयकुमार
महाराज चंडप्रद्योत अभयकुमार को बंदी बनाना चाहते थे । उन्होंने इस कार्य के लिए एक गणिका को चुना। गणिका ने सारी योजना बनाई और शहर की दो सुन्दर और चतुर षोडशियों को तैयार किया। वे तीनों राजगृह में आई और अपने आपको धर्मनिष्ठ श्राविकाओं के रूप में विख्यात कर दिया। प्रतिदिन मुनि-दर्शन, धर्मश्रवण तथा अन्यान्य धार्मिक क्रियाकाण्डों को करने का प्रदर्शन कर जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर दिया । अभयकुमार भी इनकी धार्मिक क्रियाओं और तत्वज्ञान की प्रवणता को देखकर आकृष्ट हुआ। एक दिन अभयकुमार ने तीनों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। तीनों गई। भोजन से निवृत्त होकर, धार्मिक चर्चा की और उन तीनों ने अभयकुमार को अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया । उसने स्वीकार कर लिया ।
अभयकुमार ठीक समय पर उनके निवास स्थान पक पहुंचा। तीनों ने भावभरा स्वागत किया, भोजन कराया और चन्द्रहार सुरा के मिश्रण से निष्पन्न मधुर पेय पिलाया । तत्काल अभय को नींद आने लगी । सुकोमल शय्या तैयार थी। अभयकुमार सो गया । वह बेसुध सा हो गया । गणिकाएं उसे रथ में डालकर अवन्ती ले गई। चंडप्रद्योत को सौंप गणिकाएं अपने घर चली गई । अभय का बुद्धिवल पराजित हो गया ।
चंडप्रयोत
अभयकुमार चंडप्रद्योत से बदला लेना चाहता था। चंडप्रद्योत वीर था । उसको आमने-सामने लड़कर पराजित कर पाना असंभव था । अभयकुमार ने गुप्त योजना बनाई। वह बनिए का रूप बनाकर उज्जयिनी आया। दो सुन्दर गणिकाएं साथ में थीं । बाजार में एक विशाल मकान किराए पर ले वहीं रहने लगा। चंडप्रद्योत उसी मार्ग से आता जाता था। उस समय वे स्त्रियां गवाक्ष में बैठकर हावभाव दिखाती थीं। चंडप्रद्योत उनके प्रति आकृष्ट हुआ और अपनी दासी के साथ प्रणय प्रस्ताव भेजा। एक दो बार वह दासी निराश लौट आई। तीसरी बार गणिकाओं ने महाराज को अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया ।
इधर अभयकुमार ने एक व्यक्ति को अपना भाई बनाकर उसका नाम प्रद्योत रख दिया। उसे पागल का अभिनय करने का प्रशिक्षण दिया। लोगों में यह प्रचारित कर दिया कि यह पागल है और सदा कहता है कि मैं प्रद्योत राजा हूं। मुझे जबरदस्ती पकड़ कर ले जा रहा है ।
निर्धारित दिन के अपरान्ह में चंडप्रद्योत गणिका के द्वार पर आया । गणिका ने स्वागत किया। चंडप्रद्योत एक पलंग पर लेट गया । इतने में ही अभय के सुभटों ने उसे धर दबोचा। उसे रस्सी से बांध कर चार आदमी अपने कंधों पर उठाकर बीच
१ चूर्णि, पृ० १०२ : व्यायाम विक्रमो वीर्यं सत्त्वं च पुरुषे गुणाः ।
२. वृत्ति, पत्र १०३ : गुणाः व्यायामविक्रमधेयं सत्त्वादिकाः ।
३ नियुक्ति, गाथा ५० : सूरा मो मण्णंता कइतवियाहि उवहि-नियडिप्पहाणाहि ।
गहिता तु अभय-पजोत-आधारादिणो बहवे ।।
४. वृत्ति, पत्र १०३ : कथानक त्रयोपन्यासस्तु यथाक्रमं अत्यन्तबुद्धिविक्रमतपस्विख्यापनार्थ इति ।
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