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सूपगड १
आसपास रहते हैं ।'
४७. आवर्त (आवट्टा )
इसके दो प्रकार हैं
४६. पाताल (समुद्र) ( पायाला )
।
पूर्णिकार ने इसके दो अर्थ किये हैं-तपामुख आदि ( महापाताल) अथवा समुद्र प्रथम अर्थ को उन्होंने सामयिक (आगमिक) और दूसरे अर्थ को लौकिक और आगमिक दोनों माना है।' वृत्तिकार ने इसका अर्थ केवल समुद्र किया है।
श्लोक ३१ :
१५५
श्लोक २६ :
१. द्रव्य आज नदि आदि में होने वाला गोलाकार भ्रमर ।
२. भाव आवर्त्त - उत्कट मोह कर्म के उदय से व्यक्ति में काम-भोग की अभिलाषा उत्पन्न होती है । तब व्यक्ति उसकी पूर्ति के लिये साधनों को जुटाने का प्रयत्न करता है। यह भाव आवर्त्त है ।"
श्लोक ३२ :
२. देखें-- ठाणं ४ / ३२६ : जंबुदीवस्स णं दीवस्स
ईसरे ।
अध्ययन ३ : टिप्पण ४६-४८
४८. राजमन्त्री ( राय मच्चा)
-
इसका अर्थ है - राजमंत्री । चूर्णिकार ने ईश्वर सामंत राजा, तलवर –— कोटपाल और मडंब ( ऐसा गांव जिसके चारों ओर एक योजन तक कोई गांव न हो) के अधिपति को राज अमात्य माना है । वृत्तिकार ने इसका अर्थ मंत्री, पुरोहित आदि करते हैं ।" दशवैकालिक की अगस्यसिंह स्थविर कृत चूर्णि तथा जिनदास महत्तरकृत्त चूर्णि में अमात्य का अर्थ दण्डनायक, सेनापति आदि किया है ।' टीकाकार हरिभद्र ने इसका अर्थ मंत्री किया है ।
विशेष विवरण के लिये देखें - दसवेआलियं ६ / २ का टिप्पण ।
१. चूचि पृष्ठ ८५-८६ यथातदिनसूतिका गुष्टिः स्तमन्धकस्य पीतक्षीरस्य इताचेतत्व परिधावतो ईवनतवावधि सम्मतीया रम्भायमाणा पृष्ठतोऽनुसर्पति, स्थितं चैन उल्लिखति, अदूरतोऽस्यावस्थिता स्निग्धया दृष्ट्या निरीक्षते एवं बंधवा अप्यस्य उदकसमीपं वाऽन्यत्र वा गच्छन्तं मा णासिस्सेहिति त्ति पिठ्ठतो परिसप्पंति चेडरूवं वा से मगती देत शयानमासीनं चैनं स्नेहमिवोद्भिरन्त्यादृष्ट्या अरतो निरीक्षमाणा अवतिष्ठते। ...चत्तारि महापायाला पण्णत्ता, तं जहा वलयामुहे, केउए, जूबए,
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३. चूर्णि, पृष्ठ ८३ : पाताला नाम वलयामुखाद्याः, सामयिकोऽयं दृष्टान्तः । उभयाविरुद्धस्तु पातालो समुद्र इत्यपदिश्यते ।
४. वृति, पत्र ८७ : पाताला इव समुद्रा इवाप्रतिष्ठित भूमितलत्वात् ।
५. (क) वृत्ति पत्र आवर्तयन्ति प्राणिनं भ्रामयन्तीत्यत्वतः तत्र ध्यावत नद्यावे भावावस्तुस्कटमोहोदयापादितविषयामिलाबादपत्यार्थनाविशेषाः ।
(ख) चूणि, पृ० ८६ : द्रव्यावर्त्ता नदीपूरो, भावावर्त्ता यैः प्रकारैरावन्ते संयमभीरवः ।
६. चूर्ण, पृ० ८६ : रायमच्चा इस्सर-तलवर माडंबिगादि ।
७. वृत्ति, पत्र ८७ : राजामात्याश्च मन्त्रीपुरोहितप्रभृतयः ।
८. (क) दसवेआलियं, ६ / २ : अगस्यसह चूणि, पृ० १३८ : रायमत्ता अनञ्चसेणावतिपभितयो । (ख) जिनदासगि, पृ० २०८ राममन्दा अच्या डायना सेवाभियो ।
६. बसवेलियं, ६ / २, हारिभद्रीया वृत्ति, पत्र १९१
राजामात्याश्च मन्त्रिणः ।
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