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सूयगडो १
अध्ययन ३ : टिप्पण ४१-४५ कर अपने अपने हिस्से में ले लिया है। (२) जो ऋण अधिक था उसे अब सहजतया देने योग्य बना दिया है।
चूर्णिकार ने इसका अर्थ-ऋण चुकाना किया है। उन्होंने समीकृत, उत्तारित और विमुक्त को एकार्थक माना है।'
श्लोक २६ : ४१. विपरीत शिक्षा देते हैं (सुसेहंति)
इसका अर्थ है-विपरीत शिक्षा देना।' वृत्तिकार ने इस अर्थ के साथ एक अर्थ और भी किया है—अच्छी शिक्षा देना । यह व्यंग है।'
श्लोक २७ : ४२. मालुकालता (मालुया)
मालुका नाम की लता, जो पेड़ों से लिपटती है । वह शोभा के लिये बगीचों में लगाई जाती है। इसकी शाखाएं लंबी होती हैं और सैकड़ों फुट तक पहुंच जाती हैं। ४३. असमाधि में (असमाहिए) वृत्तिकार ने इस प्रसंग में एक सुन्दर श्लोक उद्धृत किया है
अमित्तो मित्तवेसेणं, कंठे घेत्तूण रोयइ ।
मा मित्ता सोग्गइ जाहि, दोवि गच्छामु दुग्गइं॥ __एक अमित्र मित्र के वेष में अपने मित्र को गले से लगाकर रोते हुये कहता है-मित्र ! तुम सुगति में मत जाओ । हम दोनों दुर्गति में साथ-साथ चलेंगे।
श्लोक २८: ४४. जैसे नया पकड़ा हुआ हाथी .. ..."बन्ध जाता है (हत्थी वा वि.........)
नये पकड़े हुये हाथी में धीरज उत्सन्न करने के लिये उसके स्वामी ईख आदि के द्वारा उसकी सेवा करते हैं और फिर अंकुश के प्रहार के द्वारा उसे पीड़ित करते हैं । इसी प्रकार जो उत्प्रवजित हो जाता है, प्रारंभ में ज्ञातिजन भी समस्त अनुकूल उपायों से उसकी सेवा करते हैं (कुछ समय बाद वे उससे दूर हो जाते हैं)।' ४५. (पिट्ठओ..... ... ''अदूरगा)
तत्काल उत्पन्न हुआ बछड़ा, स्तनपान कर लड़खड़ाते हुए इधर-उधर दौड़ता है तब उसकी मां गाय पूंछ को ऊपर उठाकर, ग्रीवा को झुकाये हुये, रंभाती हुई उसके पीछे-पीछे चलती है, उसके बैठ जाने पर यह उसे चाटती है, उसके समीप बैठकर उसे स्नेहभरी दृष्टि से देखती है, उसी प्रकार उत्प्रजित व्यक्ति का नया जन्म मानकर वह कहीं दौड़ न जाये इस दृष्टि से वह जहां भी जाता है ज्ञातिजन उसके पीछे-पीछे जाते हैं, वह जो कुछ मांगता है वह उसे देते हैं और स्नेहमयी दृष्टि से उसके
१. चणि, पृष्ठ ८५ : समीकतं ति वा उतारियति वा विमोक्खितं (ति) वा एगलैं । २. (क) चूणि पृष्ठ ८५ : सुसेहिति वा ओसिक्खावेतीत्यर्थः ।
(ख) वृत्ति पत्र ८६ : 'सुसेहंति' ति .............."व्युग्राह्यन्ति । ३. वृत्ति पत्र ८६ : 'सुसेहंति' ति सुष्ठ शिक्षयन्ति । ४. वृत्ति, पत्र ८६ : मालुया वल्ली। ५. वृत्ति, पत्र ८६ । ६. (क) चूणि, पृष्ठ ८५ : कञ्चित् कालं कासारोच्छखण्डादिभिरनुवृत्य पश्चाद् आराप्रहारैर्बाध्यते ।
(ख) वृत्ति, पत्र ८७ : धृत्युत्पादनार्थमिक्षशकलादिभिरुपचयते, एवमसावपि सर्वानुकूलरुपायरुपचर्यते
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