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सूयगडो १
अध्ययन ३ : टिप्पण ३५-४०
श्लोक २२: ३५. उत्तम (उत्तरा)
वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किये हैं-प्रधान (उत्तम) और उत्तरोत्तर उत्पन्न ।'
चूणिकार ने प्रतिवर्ष एक के बाद एक उत्पन्न होने वाले को 'उत्तर' माना है।' ३६. छोटे-छोटे (क्षुल्लक)
इसके दो अर्थ हैं—अप्राप्तवय वाले और कर्म करने में अयोग्य ।' ३७. नवयौवना (णवा)
यह भार्या का विशेषण है । चूर्णिकार ने इसके तीन अर्थ किये हैं-(१) नववधू, (२) जिसके प्रसव न हुआ हो, (३) गभिणी।
वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किये हैं-नवयौवना, नवपरिणीता। ३८. वह दूसरे मनुष्य के पास न चली जाए (मा सा अण्णं जणं गमे)
वह नवोढ़ा पत्नी परित्यक्त होने पर दूसरे के पास न चली जाये । ऐसा होने पर महान् जनापवाद होगा । तुम्हारे जीवित रहते हुये यदि वह दूसरे मनुष्य को अपना पति चुन ले या मार्ग-भ्रष्ट हो जाये तो तुम्हें अधृति होगी, हमारी कीर्ति नष्ट होगी और लोग हमारी निन्दा करेंगे।
श्लोक २३: ३६. श्लोक २३:
चूर्णिकार ने इस श्लोक के प्रथम दो चरणों की व्याख्या इस प्रकार की है
'तात ! हम जानते हैं कि तुमने कार्य के अधिक भार से डरकर प्रव्रज्या ग्रहण की है। अब हम काम करने में समर्थ हैं । हम तुम्हारा सहयोग करेंगे । अब कुमार ! तुम किसी काम के हाथ मत लगाना । काम की ओर आंख उठाकर भी मत देखना । एक तिनका भी इधर से उधर उठाकर मत रखना। हम सब कुछ कर लेंगे । तुम घर चलो' ।'
श्लोक २५: ४०. चुका दिया है (समीकतं)
वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किये हैं- (१) जो कुछ तुम्हारे पर ऋण था उसको हम सबने सम्यक् प्रकार से विभाजित १. वृत्ति, पत्र ८५ : उत्तराः प्रधानाः उत्तरोत्तरजाता वा। २. चूणि, पृ०८४ : उत्तरा नाम प्रतिवर्षमुत्तरोत्तरजातका। समघटच्छिन्नगाः । ३. चूर्णि, पृ०८४ : खुड्डग त्ति अप्राप्तवयसः अकर्मयोग्या वा। ४. चूणि, पृ० ८४ : नवा नाम नववधूः अप्रसूतामिणी वा। ५. वृत्ति, पत्र ८६ : नवा प्रत्यग्रयौवना अभिनवोढा वा। ६. (क) चुणि, पृ० ८४ : मा सा अण्णं जणं गमेज्ज उन्मामए वा करेज्ज, जीवंत एव तुमम्मि अण्णं पति गेण्हेज्जा ततो तुज्य वि
अद्धिती भविस्सति, अम्ह वि य जणे छायाघातो अवण्णओ य भविस्सतीति । (ख) वृत्ति, पत्र ८६ : मा असो त्वया परित्यक्ता सती अन्यं जनं गच्छेदुन्मार्गयायिनी स्याद्, अयं च महान जनापवाद इति । ७.णि, पृ० ८४ : जाणामो-जधा तुमं अतिकम्मा भीतो पव्वइतो, इवाणि वयं कम्मसमत्था कम्मसहा कम्मसहायकत्वं प्रति भवतः,
तविदानी कुमार ! (क) अतियणिएणं? चंपगाणि वि हत्थेण मा छिवाहि, तणं वा उक्खिवाहित्ति दूरगतं च णं
वळूण भगंति । आसणं वा गृहम्-आगच्छ । ८. वत्ति, पत्र ८६ : यत्किमपि भवदीयमणजातमासीत्तत्सर्वमस्माभिः सम्पग्विभज्य समीकूतं समभागेन व्यवस्थापितं, यदिवोत्कटं सत्
समीकृतं-सुदेयत्वेन व्यवस्थापितम् ।
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