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सूयगडो १
अध्ययन २ : टिप्पण ८२-८६
श्लोक ५०
५२. गाडीवान द्वारा (वाहेण)
चूणिकार और वृत्तिकार ने इसका मुख्य अर्थ व्याध और वैकल्पिक अर्थ गाडीवान किया है।'
श्लोक ६० ८३. संस्तव (कामभोग का परिचय) (संथवं)
चूर्णिकार ने इसका अर्थ-पूर्वापर संबंध और वृत्तिकार ने काम संबंधी परिचय किया है। ८४. (सोयई, थणई, परिदेवई)
चर्णिकार ने 'सोयई' का अर्थ मनस्ताप, 'थणई' का अर्थ वाचिक क्रन्दन और 'परिदेवई' के स्थान पर 'परितप्पई' पाठ मानकर उसका अर्थ आन्तरिक और बाह्य शारीरिक दुःख का वेदन करना किया है।
वत्तिकार ने शोचति का अर्थ-शोक करना, स्तनति का अर्थ सशब्द निःश्वास लेना और 'परिदेवते' का अर्थ बहुत विलाप या क्रन्दन करना किया है।'
श्लोक ६२ : ८५. यह जीवन अल्पकालिकवास है (इत्तरवास)
सौ वर्ष की परम आयुष्य वाला मनुष्य अल्पवय में भी मर जाता है, इसलिए इस जीवन को 'इत्वरवास'-अल्पकालिक कहा गया है।"
मनष्य का परम आयुष्य सौ वर्ष का माना जाता है। यह भी हजारों वर्ष की आयुष्य की अपेक्षा से कतिपय निमेषमात्र का ही होता है । अतः इसे अल्पकालिक कहा गया है।
श्लोक ६३
५६. आत्मघाती (आयदंड)
दंड का अर्थ है-हिंसा। दूसरे प्राणियों की हिंसा करने वाला अपनी हिंसा भी करता है। दूसरों को दंडित करने वाला १ (क) चणि, पृ० ७१ : वाहो णाम लुद्धगो.........वाहतीति वाहः शाकटिकोऽन्यो वा ।
(ख) वृत्ति, पत्र ७२ : व्याधेन लुब्धकेन.........यदिवा-वाहयतीति वाहः-शाकटिकस्तेन । २. चूणि, पृ०७१: संथवो णाम पुव्वा-ज्वरसंबंधो। ३. वृत्ति, पत्र ७३ : परिचयं कामसम्वन्धम् । ४.णि, पृ०७२: शोचनं मानसस्तापः, निस्तननं तु वाचिकं किञ्चित् कायिकं च । सर्वतस्तप्यते परितप्यते बहिरन्तश्च काय-बाङ
मनोभिर्वा। पनि पत्र ७३ : शोचति, स च पौधामिकः कदीमानस्तिया वा क्षुधादिवेदनाग्रस्तोऽत्यर्थं स्तनति सशब्दं निःश्वसिति, तथा
परिदेवते विलपत्याक्रन्दति सुबह्वितिहा माम्रियत इति त्राता नैवास्ति साम्प्रतं कश्चित् ।
कि शरणं मे स्यादिह दुष्कृतचरितस्य पापस्य ? ॥ ६. चूणि, पृ० ७२ : इत्तरमिति अल्पकालमित्यर्थः। ७. वत्ति, पत्र ७४ : साम्प्रतं सुबहप्यायुर्वषेशतं तच्च तस्य तदन्ते त्रुटयति, तच्च सागरोपमापेक्षया कतिपयनिमेषप्रायत्वात् इत्वरवास
कल्पं वर्तते-स्तोकनिवासकल्पम् ।
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