________________
समवाश्रो
५. दान - संभोग
इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्प वाले साधुओं को शय्या उपधि, आहार, शिष्य आदि दिए जाते हैं। सामान्य स्थिति में साध्वी को शय्या, उपधि, आहार आदि नहीं देते । '
६. निकाचना-संभोग
इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्प वाले साधुओं को उपधि, आहार आदि के लिए निमंत्रित किया जाता है। ७. अभ्युत्थान-संभोग
८. कृतिकर्मकरण- संभोग
इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्प वाले साधुओं को अभ्युत्थान का सम्मान किया जाता है।'
६४
इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्प वाले साधुओं का कृतिकर्म किया जाता है। इसमें खड़ा होना, हाथों से आवर्त्त देना, सूत्रोच्चारण करना आदि अनेक विधियों का पालन किया जाता है।'
६. वैयावृत्त्यकरण- संभोग
इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्प वाले साधुओं को सहयोग दिया जाता है। शारीरिक और मानसिक सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान में योग देना वैयावृत्त्यकरण है। जैसे आहार, वस्त्र आदि देना शारीरिक उपष्टंभ है, वैसे ही कलह आदि के निवारण में योग देना मानसिक उपष्टंभ है। सांभोगिक साध्वियों को यात्रा पथ आदि विशेष स्थिति में सहयोग दिया जाता है।
१०. समवसरण - संभोग
११. संनिषद्या संभोग
समवाय १२ : टिप्पण
इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्प वाले साधु एक साथ मिलते हैं । अवग्रह की व्यवस्था भी इसी से अनुस्यूत है । अवग्रह ( अधिकृत स्थान ) तीन प्रकार के होते हैं - १. वर्षा - अवग्रह. २. ऋतुबद्ध- अवग्रह और ३. वृद्धवास अवग्रह | अपने सांभोगिक साधुओं के अवग्रह में कोई साधु जाकर शिष्य वस्त्र आदि का जान-बूझकर ग्रहण करता है तथा अनजान में गृहीत शिष्य, वस्त्र आदि अवग्रहस्थ साधुओं को नहीं सौंपता तो उसे असांभोगिक कर दिया जाता है। पार्श्वस्थ आदि का अवग्रह शुद्ध साधुओं को मान्य नहीं होता, फिर भी उनका क्षेत्र छोटा हो और शुद्ध साधुओं का अन्यत्र निर्वाह होता हो तो साधु उस क्षेत्र को छोड़ देते हैं । यदि पार्श्वस्थों आदि का क्षेत्र विस्तीर्ण हो और शुद्ध साधुओं का अन्यत्र निर्वाह कठिन हो तो उस क्षेत्र में साधु जा सकते हैं और शिष्य, वस्त्र आदि का ग्रहण कर सकते हैं।'
१. निशीथ चूर्णि (निशीथ सूत्र, द्वितीय विभाग), पृ० ३४९ ।
२. वही, पृ० ३५० ।
३. वही, पृ० ३५० ।
इस व्यवस्था के अनुसार दो सांभोगिक आचार्य निषद्या पर बैठ कर श्रुत परिवर्तना आदि करते हैं । "
१२. कथा - प्रबंध संभोग
इसके द्वारा कथा सम्बन्धी व्यवस्था दी गई है। कथा के पांच प्रकार हैं- १. वाद, २. जल्प, ३. वितण्डा, ४. प्रकीर्ण कथा और ५. निश्चय कथा । प्रकीर्ण कथा के दो प्रकार हैं- उत्सर्ग कथा और द्रव्यास्तिकनय कथा । इसी प्रकार निश्चय कथा के भी दो प्रकार हैं- अपवाद कथा और पर्यायास्तिकनय कथा । प्रथम तीन कथाएं साध्वियों के साथ नहीं किन्तु
अन्य असांभोगिक, अन्यतीर्थिक व गृहस्थ सभी के साथ की जा सकती हैं ।"
इस प्रकार इन बारह संभोगों के द्वारा समानकल्पी साधु-साध्वियों तथा असमानकल्पी साधुओं के साथ व्यवहार की
४. वही, पृ० ३५१ ।
५. वही, पृ० ३५१; समवायांगवृत्ति पत्र २२ ।
Jain Education International
६ वही. पृ ३५३; वही, पत्र २२ ।
७ वही, पृ० ३५४; वही, पन २३ ।
८. वही, पृ० ३५४, ३५५ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org