________________
समवायो
७. अटुसामइए केवलिसमुग्घाए अष्ट सामयिकः केवलिसमुदघातः पण्णत्ते, तं जहा
प्रज्ञप्तः, तद्यथापढमे समए दंडं करेइ,
प्रथमे समये दण्डं करोति, बीए समए कवाडं करेइ, द्वितीये समये कपाटं करोति, तइए समए मंथं करेइ, तृतीये समये मन्थं करोति, चउत्थे समए मंथंतराइं पूरेइ, चतुर्थे समये मन्थान्तराणि पूरयति, पंचमे समए मंथंतराइं पडिसाहरइ, पञ्चमे समये मन्थान्तराणि प्रतिसंहरति, छठे समए मंथं पडिसाहरइ, पष्ठे समये मन्थं प्रतिसंहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, सप्तमे समये कपाटं प्रतिसंहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, अष्टमे समये दण्डं प्रतिसंहरति, तत्तो पच्छा सरीरत्थे भवइ । ततः पश्चात् शरीरस्थो भवति ।
समवाय ८ : सू०७-१३ ७. केवली-समुद्घात' आठ समय का होता
है, जैसे—आत्म-प्रदेशों का प्रथम समय में दण्डाकार निर्माण होता है, दूसरे समय में कपाटाकार निर्माण होता है, तीसरे समय में मंथाकार निर्माण होता है, चौथे समय में मंथ के अन्तरालों की पूर्ति होती है, पांचवें समय में मंथ के अन्तरालों में परिव्याप्त आत्मप्रदेशों का प्रतिसंहरण होता है, छद्रे समय में मंथाकार का प्रतिसंहरण होता है, सातवें समय में कपाटाकार का प्रतिसंहरण होता है, आठवें समय में दण्डाकार का प्रतिसंहरण होता है, तत्पश्चात् आत्मा शरीरस्थ हो जाती है।
८. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणि- पार्श्वस्य अर्हतः पुरुषादानीयस्य अष्ट ८. पुरुषादानीय' अर्हत् पार्श्व के आठ गण
अस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा गणाः अष्ट गणधरा अासन्, तद्यथा- और आठ गणधर थे। जैसेहोत्था, तं जहा
१. शुंभ ५. सोम
२. शुंभधोष ६. श्रीधर संगहणीगाहासंग्रहणी गाथा--
३. वशिष्ठ ७. वीरभद्र सुंभे य सुंभघोसे य, शुम्भश्च शुम्भघोषश्च,
४. ब्रह्मचारी ८. यश। वसिठे बंभयारिय।
वशिष्ठो ब्रह्मचारी च । सोमे सिरिधरे चेव,
सोमः श्रीधरश्चैव, वीरभद्दे जसे इ य॥
वीरभद्रो यशोऽपि च ॥ ६. अट्र नक्खत्ता चंदेणं सद्धि पमई अष्ट नक्षत्राणि चन्द्रेण साई प्रमर्द योगं
द्ध पमह अष्ट नक्षत्राणि चन्द्रण साद्ध प्रमद योग . आठ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्दयोग जोगं जोएंति, तं जहा-कत्तिया योजयन्ति, तद्यथा-कृत्तिका रोहिणी करते हैं, जैसे—कृत्तिका, रोहिणी, रोहिणी पुणवतू महा चित्ता पुनर्वसू मघा चित्रा विशाखा अनुराधा पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुविसाहा अणुराहा जेट्ठा। ज्येष्ठा ।
राधा और ज्येष्ठा। १०. इमोसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति एकेषां १०. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों
अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अटू नैरयिकाणां अष्ट पल्योपमानि स्थितिः की स्थिति आठ पल्योपम की है। पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता।
११. च उत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं चतुर्थी पृथिव्यां अस्ति एकेषां नैरयि- ११. चौथी पृथ्वी के कुछ नरयिकों की
नेरइयाणं अटू सागरोवमाइं ठिई काणां अष्ट सागरोपमाणि स्थितिः स्थिति आठ सागरोपम की है। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता।
१२. असरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं असुरकुमाराणां देवानां अस्ति एकेषां १२. कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति आठ
अट्ट पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। अष्ट पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। पल्योपम की है ।
१३.साहम्मासाणस
कप्पस साधमशानयाः कल्पयारास्त एकपा २. सावन जारसा
सौधर्मशानयोः कल्पयोरस्ति एकेषां १३. सौधर्म और ईशानकल्प के कुछ देवों अत्थेगइयाणं देवाणं अद्र देवानां अष्ट पल्योपमानि स्थिति: की स्थिति आठ पल्योपम की है। पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org