SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अट्ठमो समवानो : आठवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. अट्ठ मयढाणा पण्णत्ता, तं जहा- अष्ट मदस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा .. १. मद के स्थान आठ हैं, जैसे-जातिमद, जातिमए कुलमए बलमए रूबमए जातिमद: कुलमदः बलमदः रूपमद: कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, तवमए सुयमए लाभमए तपोमदः श्रुतमदः लाभमद: ऐश्वर्यमदः। श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद । इस्सरियमए। २. अट्र पवयणमायाओ पण्णत्ताओ, तं अष्ट प्रवचनमातरः प्रज्ञप्ताः , तद्यथा- जहा- इरियासमिई भासासमिई ईर्यासमितिः भाषासमितिः एषणा- एसणासमिई आयाण-भंड-मत्त- समिति: आदान-भाण्डाऽमत्र-निक्षेपणानिक्खेवणासमिई उच्चार- समितिः उच्चार-प्रश्रवण-क्षवेल सिंघाणपासवण - खेल - सिंघाण- जल्ल जल्ल-पारिष्ठापनिकीसमितिः मनोपारिट्ठावणियासमिई मणगुत्ती गुप्तिः वाग्गुप्तिः कायगुप्तिः। वइगुत्ती कायगुत्ती। २. प्रवचन-माता के आठ प्रकार हैं, जैसे--- ईयर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान-भांड-अमत्र-निक्षेपणासमिति, उच्चार-प्रश्रवण-क्ष्वेल-सिंघाणजल्ल-पारिस्थापनिकीसमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति । ३. वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा वानमन्तराणां देवानां चैत्यवक्षाः अष्ट अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं योजनानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्ताः। पण्णत्ता। ३. व्यन्तर देवताओं के चैत्य-वृक्ष' आठ योजन ऊंचे हैं । ४. जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई जम्बूः सुदर्शना अष्ट योजनानि ऊर्ध्व- ४. सुदर्शन जम्बू-वृक्ष की ऊंचाई आठ उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। मुच्चत्वेन प्रज्ञप्ता। योजन की है। ५. कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ कूटशाल्मली गरुडावासः अष्ट योज- ५. गरुड़जातीय वेणुदेव के आवास कूटजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं नानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्तः। शाल्मली की ऊंचाई आठ योजन की पण्णत्ते। ६. जंबुद्दीवस्स णं जगई अट्ट जोयणाई जम्बूद्वीपस्य जगतो अष्ट योजनानि उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्ता। ६. जम्बूद्वीप की जगती (प्राकार) की ऊंचाई आठ योजन की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy