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समवायो
समवाय ७ : टिप्पण
स्थानांग' सूत्र में भी पूर्व-द्वारिक आदि नक्षत्रों का कथन है और वह सैद्धान्तिक मत के अनुसार है। किन्तु समवायांग में जो प्रतिपादन हुआ है वह मतान्तर का वर्गीकरण है । इस तथ्य की सूचना स्वयं वृत्तिकार ने दी है। पाठ संशोधन में प्रयुक्त 'ख, ग' संकेत की प्रतियों तथा वृत्ति में छट्ठी प्रतिपत्ति का पाठ पाठान्तर के रूप में उल्लिखित है। इससे पता चलता है कि एक वाचना में छट्टी प्रतिपत्ति का पाठ सम्मत्त था और दूसरी वाचना में प्रस्तुत पाठ रहा है। यह वाचनाभेद प्रतीत होता है। इसका कारण पाठ की विस्मृति नहीं है । पूर्व-द्वारिक आदि नक्षत्रों के विधान का तात्पर्यार्थ यह है कि पूर्व आदि दिशा में यात्रा के लिए ये नक्षत्र प्राय: शुभ होते हैं।'
१. ठाणं, ७/१४६-१४६ । २. समवायांगवृत्ति, पत्न १३ : ___ इह तु मतान्तरमाश्रित्य कृत्तिकादीनि सप्त सप्त पूर्वद्वारिकादीनि भणितानि । ३. समवायांगवृत्ति, पत्न १३ :
पूर्वद्वारिकाणि --- पूर्वदिशि येष गच्छत: शुभं भवति :
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