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समवानो
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समवाय ७: टिप्पण
पूर्व-द्वारिक नक्षत्र- कृत्तिका, राहिणी, संस्थान (मृगशिर), आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा। वक्षिण-द्वारिक नक्षत्र-मघा, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशाखा । पश्चिम-द्वारिक नक्षत्र–अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित् और श्रवण । उत्तर-द्वारिक नक्षत्र- धनिष्ठा, शतभिषग, पूर्वप्रोष्ठपदा, उत्तरप्रोष्ठपदा, रेवती, अश्विनी और भरणी। सूर्यप्रज्ञप्ति में प्राप्त छह वर्गीकरणों का स्वरूप इस प्रकार हैपूर्व-द्वारिक
१. कृत्तिका, रोहिणी, संस्थान (मृगशिर), आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा। २. मघा, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशाखा । ३. धनिष्ठा, शतभिषग्, पूर्वभद्रपदा, उत्तरभद्रपदा, रेवती, अश्विनी और भरणी । ४. अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, संस्थान (मृगशिर), आर्द्रा, और पुनर्वसु ।
५. भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, संस्थान (मृगशिर), आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य । दक्षिण-द्वारिक
१. मघा, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशाखा । २. अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित् और श्रवण । ३. कृत्तिका, रोहिणी, संस्थान (मृगशिर), आर्द्रा, पूनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा। ४. पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त और चित्रा।
५. अश्लेषा, मघा, पूर्व फल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त, चित्रा और स्वाति । पश्चिम-द्वारिक १. अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित् और श्रवण । २. धनिष्ठा, शतभिषग, पूर्वप्रोष्ठपदा, उत्तरप्रोष्ठपदा, रेवती, अश्विनी और भरणी। ३. मघा, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशाखा। ४. स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा। ५. विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा और अभिजित् । उत्तर-द्वारिक
१. धनिष्ठा, शतभिषग, पूर्वप्रोष्ठपदा, उत्तरप्रोष्ठपदा, रेवती, अश्विनी और भरणी । २. कृत्तिका, रोहिणी, संस्थान (मृगशिर), आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा । ३. अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित् और श्रवण । ४. अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषग, पूर्वभद्रपदा, उत्तरभद्रपदा और रेवती। ५. श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषग, पूर्वप्रोष्ठपदा, उत्तरप्रोष्ठपदा, रेवती और अश्विनी। सूत्रकार ने छठी प्रतिपत्ति को मान्य किया है, उसके अनुसारपूर्व-द्वारिक-अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषग, पूर्वप्रोष्ठपदा, उत्तरप्रोष्ठपदा और रेवती। दक्षिण-द्वारिक-अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, संस्थान (मृगशिर), आर्द्रा और पूनर्वसु । पश्चिम-द्वारिक-पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त और चित्रा।
उत्तर-द्वारिक-स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा । १. सूरपण्णत्ती १०/१३१ : तत्य बलू इमामो पंच पडिवत्तीपो पण्णत्तायो, ......
......"एते एवमाहंसु । २. वही, १०/१३१:.."वयं पुण एवं वदामो ता अभिईयादि..."
....." उत्तरासाला।
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