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________________ समवानो २६ समवाय ६ : टिप्पण २. विनय-मानसिक, वाचिक और कायिक अभिमान का परिहार करना । इससे अभिमान-मुक्ति और परस्परोपग्रह का विकास होता है । ३. वैयावृत्य-आचार्य आदि से संबंधित दस प्रकार की सेवा करना। इससे सेवाभाव पनपता है। ४. स्वाध्याय-काल-मर्यादा के अनुसार सद् ग्रन्थों का स्वाध्याय करना। इससे विकथा त्यक्त हो जाती है। ५. ध्यान-चित्त को अशुभ परिणामों से हटाकर शुभ परिणामों में एकाग्र करना। आर्त और रौद्र ध्यान को छोड़कर धर्म और शुक्ल ध्यान की साधना करना । इससे मनोनिग्रह और इन्द्रिय-निग्रह सधता है। ६. व्युत्सर्ग-काया की प्रवृत्ति (हलन-चलन) तथा क्रोध आदि का परिहार करना। इससे शरीर, उपकरण आदि पर होने वाले ममत्व का विसर्जन होता है। विशेष विवरण के लिए देखेंउत्तरज्झयणाणि, भाग २, पृ० २५१-२८५। ३. समुद्घात (समुग्घाया) देखें-प्रस्तुत आगम के ७/२ का टिप्पण । ४. अर्थावग्रह (अत्युग्गहे) इन्द्रिय और मन का ज्ञान अल्प विकसित होता है। इसलिए पदार्थ के ज्ञान में उनका एक निश्चित क्रम है । हमें उनके द्वारा पहले पहल वस्तु के सामान्य रूप या एकता का बोध होता है । उसके बाद क्रमशः वस्तु की विशेष अवस्थाएं ज्ञात होती हैं । ज्ञान के इस क्रम के चार घटक तत्व हैं-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । इनका न उत्क्रम होता है और न व्यतिक्रम । पहले अर्थ (वस्तु) का ग्रहण होगा। अर्थग्रहण के बाद ही विचार होगा और विचार के बाद निश्चय और निश्चय के बाद धारणा। पहले अवग्रह, फिर ईहा, फिर अवाय और अंत में धारणा । अवग्रह का अर्थ है -पहला ज्ञान, इन्द्रिय और वस्तु के संबंध से होने वाला सत्तात्मक पहला ज्ञान । यह सामान्य होता है। अवग्रह के दो भेद हैं-व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह । व्यंजनावग्रह अव्यक्त ज्ञान है। उसके बाद अर्थ का अवग्रह होता है। यह व्यंजनावग्रह के आगे का ज्ञान है। उससे कुछ स्पष्ट होता है, जैसे 'कुछ है' । अर्थावग्रह का विषय अनिर्देश्य-सामान्य होता है। किसी भी शब्द के द्वारा कहा नहीं जा सके, वैसा सामान्य होता है। दर्शन के द्वारा 'सत्ता' का बोध होता है, और अर्थावग्रह के द्वारा 'वस्तु है' का ज्ञान होता है। 'सत्ता' के ज्ञान से यह इतना-सा आगे बढ़ता है। इसमें अर्थ के स्वरूप, नाम, जाति, क्रिया, गुण आदि का निर्देश नहीं होता। अवग्रह-यह शब्द है। ईहा-शब्द पशु का है या मनुष्य का ? स्पष्ट भाषात्मक है, इसलिए मनुष्य का होना चाहिए। अवाय-(विशेष परीक्षा के बाद) यह मनुष्य का ही है। धारणा-अवाय द्वारा किए गए निर्णय को संस्कार रूप में बदल देना। उसे स्मृति का हेतु बना देना। प्रस्तुत आलापक में पांच इन्द्रियों तथा मन के आधार पर अवग्रह के छह भेद निर्दिष्ट हैं। अवग्रह के दो भेद और हैं१. नैश्चयिक अवग्रह-एक सामयिक । २. व्यावहारिक अवग्रह-असंख्य सामयिक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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