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________________ सत्तमो समवायो : सातवां समवाय संस्कृत छाया १. सत्त भयाणा पण्णत्ता, तं जहा- सप्त भयस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- इहलोगभए परलोगभए आवाण- इहलोकभयं परलोकभयं आदानभयं भए अकम्हाभए आजीवभए अकस्माद्धयं प्राजीवभयं मरणभयं मरणभए असिलोगभए। अश्लोकभयम्। हिन्दी अनुवाद १. भय के स्थान सात हैं, जैसे१. इहलोक भय-सजातीय से भय, जैसे—मनुष्य को मनुष्य से और देव को देव से भय । २. परलोक भय-विजातीय से भय, जैसे-मनुष्य को देव, तिथंच आदि से भय । ३. आदान भय-धन आदि के अपहरण से होने वाला भय। ४. अकस्मात् भय-किसी बाह्य निमित्त के बिना ही अपने विकल्पों से होने वाला भय। ५. आजीव भय-आजीविका का भय । ६. मरण भय-मृत्यु का भय । ७. अश्लोक भय-अकीति का भय । २. सत्त समुग्घाया पण्णत्ता,तं जहा- सप्त समुद्घाताः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए वेदनासमुद्घातः कषायसमुद्घातः मारणंतियसमुग्घाए वेउन्विय- मारणान्तिकसमुद्घातः वैक्रियसमधातः समुग्घाए तेयसमुग्घाए आहार- तेजः समुद्घातः आहारसमुद्घात: समुग्घाए केवलिसमुग्घाए। केवलिसमुद्घातः । २. समुद्घात' के सात प्रकार हैं, जैसे१. वेदना समुद्घात- असात-वेदनीय कर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात। २. कषाय समुद्घात-कषाय-मोहकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात । ३. मारणान्तिक समुद्धात-आयुष्य के एक अन्तर्मुहूर्त अवशिष्ट रहने पर उसके आश्रित होने वाला समुद्घात । ४. वैक्रिय समुद्घात-वैक्रिय नामकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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