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________________ चउत्थो समवानो : चौथा समवाय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं चत्वारः कषायाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- जहा-कोहकसाए माणकसाए क्रोधकषायः मानकषायः मायाकषायः मायाकसाए लोभकसाए। लोभकषायः। १. कषाय के चार प्रकार हैं, जैसे-क्रोध कषाय, मान कषाय, माया कषाय और लोभ कषाय। २. चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारि ध्यानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-- २. ध्यान के चार प्रकार हैं, जैसे-आत अट्टे झाणे रोहे झाणे धम्मे झाणे आर्त ध्यानं रौद्रं ध्यानं धयं ध्यानं ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म्य ध्यान और सुक्के झाणे। शुक्लं ध्यान । शुक्ल ध्यान । ३. चत्तारि विगहाओ पण्णत्ताओ, तं चतस्रो विकथाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-- ३. विकथा के चार प्रकार हैं, जैसे-- जहा इत्थिकहा भत्तकहा राय- स्त्रीकथा भक्तकथा राजकथा देशकथा। स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा और कहा देसकहा। देशकथा। ४. चत्तारि सण्णा पण्णत्ता, तं जहा- चतस्रः संज्ञा प्रज्ञप्ताः , तद्यथा--आहार- ४. संज्ञा के चार प्रकार हैं, जैसे-आहार आहारसण्णा भयसण्णा मेहुण- संज्ञा भयसंज्ञा मैथुनसंज्ञा परिग्रहसंज्ञा। संज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसण्णा परिग्गहसण्णा। संज्ञा। ५ चउविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधो बन्धः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ५. बंध के चार प्रकार हैं, जैसे-प्रकृति पगडिबंधे ठिइबंधे अणुभावबंधे प्रकृतिबन्ध: स्थितिवन्धः अनुभावबन्धः बन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभावबन्ध और पएसबंधे। प्रदेशबन्धः । प्रदेशबन्ध । ६. चउगाउए जोयणे पण्णत्ते। चतुर्गव्यूतिकं योजनं प्रज्ञप्तम् । ६. चार गाउ का एक योजन होता है। ७. अणुराहानक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते। अनुराधानक्षत्रं चतुस्तारं प्रज्ञप्तम्। ७. अनुराधा नक्षत्र के चार तारे हैं। ८. पुव्वासाढनक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते। पूर्वाषाढानक्षत्रं चतुस्तारं प्रज्ञप्तम्।। ८. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के चार तारे हैं । ९. उत्तरासाढनक्खत्ते चउत्तारे उत्तराषाढानक्षत्रं चतुस्तारं प्रज्ञप्तम्।। ६. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के चार तारे हैं। पण्णत्ते। १०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति एकेषां १०. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि नैरयिकाणां चत्वारि पल्योपमानि की स्थिति चार पल्योपम की है। पलिओवमाइंठिई पणत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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