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________________ समवायो समवाय ३ : टिप्पण ४. ज्ञान-अन्तराय-ज्ञान में विघ्न उपस्थित करना । ५. ज्ञान-विसंवादनयोग-अकाल में स्वाध्याय आदि का अनुष्ठान कर ज्ञान के विपरीत प्रवृत्ति करना । दर्शन विराधना सम्यग् दर्शन को खंडित करना दर्शन-विराधना है। इसके भी पांच प्रकार हैं१. दर्शन-प्रत्यनीकता–क्षायिक दर्शन का धनी श्रेणिक भी नरक में चला गया। २. दर्शन-निन्हवन-दर्शन की प्रभावना करने वाले शास्त्र का अपलाप करना। ३. दर्शन-अत्याशातना-दर्शन शास्त्रों का तिरस्कार करना । इन शास्त्रों से क्या, जो कलहकारी हैं। ४. दर्शन-अन्तराय-दर्शन में विघ्न उपस्थित करना। ५. दर्शन-विसंवादनयोग-शंका, कांक्षा आदि दोषों के द्वारा दर्शन की विपरीत प्रवृत्ति करना। चारित्र विराधना व्रतों का खंडन चारित्र-विराधना है। पांच चारित्र हैं-सामायिक-चारित्र, छेदोपस्थापनीय-चारित्र, परिहार-विशुद्ध-चारित्र, सूक्ष्मसंपराय-चारित्र और यथाख्यात-चारित्र । इन पांचों में दोषापत्ति करना चारित्र-विराधना है।' ६. सूत्र १७-१८ यह कथन देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र में जन्म ग्रहण करनेवाले असंख्यात वर्ष की आयुष्यवाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्यों के लिए है। १, आवश्यक, हरिभद्रीया वृत्ति, भाग २, पृ०६॥ २ समवायांगवृत्ति, पत्र : तथा प्रसङ्ख्यातवर्षायुषां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्मनुष्याणां देवकुरूत्तरकुछजन्मनां वीणि पल्योपमानीति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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