SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायो समवाय ३ : सू० १४-२४ १४. दोच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं द्वितीयस्यां पृथिव्यां नैरयिकाणामुत्कर्षेण १४. दूसरी पृथ्वी के नैरयिकों की उत्कृष्ट उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाइं त्रीणि सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता। स्थिति तीन सागरोपम की है। ठिई पण्णत्ता। १५. तच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं तृतीयस्यां पृथिव्यां नैरयिकाणां जघन्येन १५. तीसरी पृथ्वी के नैरयिकों की जघन्य जहणणं तिणि सागरोवमाइं त्रीणि सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता। स्थिति तीन सागरोपम की है। ठिई पण्णत्ता। १६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं असुरकुमाराणां देवानां अस्ति एकेषां १६. कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति तीन तिण्णि पलिओवमाइं ठिई त्रीणि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। पल्योपम की है। पण्णत्ता। १७. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदिय- असंख्येयवर्षायुःसंज्ञि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग- १७. असंख्य वर्षों की आयु वाले संज्ञीपंचेद्रिय तिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं योनिकानामुत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि तिर्यग्योनिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तिण्णि पलिओवमाई ठिई स्थितिः प्रज्ञप्ता । तीन पल्योपम की है। पण्णत्ता। १८. असंखेज्जवासाउयगम्भवक्कंतिय- असंख्येयवर्षायुर्गर्भावक्रान्तिकसंज्ञिमनु- १८. असंख्य वर्षों को आयु वाले गर्भजसंज्ञी सण्णिमणुस्साणं उक्कोसेणं तिण्णि ष्याणामुत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। पम की है। १६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइ- सौधर्मेशानयोः कल्पयोरस्ति एकेषां १६. सौधर्म और ईशानकल्प के कुछ देवों याणं देवाणं तिण्णि पलिओवमाइं देवानां त्रीणि पल्योपमानि स्थितिः की स्थिति तीन पल्योपम की है। ठिई पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता । २०. सणंकमारमाहिदेसू कप्पेसु अत्थे- सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः कल्पयोः अस्ति २०. सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के कुछ देवों गइयाणं देवाणं तिण्णि सागरो- एकेषां देवानां त्रीणि सागरोपमाणि की स्थिति तीन सागरोपम की है। वमाइं ठिई पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। २१.जे देवा आभंकरं पभंकरं आभंकर- ये देवा आभङ्करं प्रभङ्करं आभङ्कर- २१. आभंकर, प्रभंकर, आभंकर-प्रभंकर, पभंकरं चंदं चंदावत्तं चंदप्पभं प्रभङ्करं चन्द्रं चन्द्रावत्तं चन्द्रप्रभ चन्द्र- चन्द्र, चन्द्रवर्त्त, चन्द्रप्रभ, चन्द्रकान्त, चंदकंतं चंदवण्णं चंदलेसं चंदज्झयं कान्तं चन्द्रवर्ण चन्द्रलेश्य, चन्द्रध्वज चन्द्रवर्ण, चन्द्रलेश्य, चन्द्रध्वज, चन्द्रचंदसिंगं चंदसिटुं चंदकूडं चंदुत्तर- चन्द्रशृङ्गं चन्द्रसृष्टं, चन्द्रकूटं चन्द्रोत्तरा- शृंग, चन्द्रसृष्ट, चन्द्रकूट और चन्द्रोवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, वतंसकं विमानं देवत्वेन उपपन्नाः, तेषां त्तरावतंसक विमानों में देवरूप में तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं तिणि देवानां उत्कर्षेण त्रीणि सागरोपमाणि उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। स्थिति तीन सागरोपम की है। २२. ते णं देवा तिण्हं अद्धमासाणं ते देवास्त्रयाणामर्द्धमासानां आनन्ति २२. वे देव तीन पक्षों से आन, प्राण, आणमंति वा पाणमंति वा वा प्राणन्ति वा उच्छ्वसन्ति वा उच्छवास और निःश्वास लेते हैं। ऊससंति वा नोससंति वा। निःश्वसन्ति वा। २३. तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिहिं तेषां देवानामुत्कर्षेण त्रिभिः वर्षसहस्रैः २३. उन देवों के तीन हजार वर्षों से भोजन वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्प- आहारार्थः समुत्पद्यते। करने की इच्छा उत्पन्न होती है । ज्जइ। २४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये २४. कुछ भव-सिद्धिक जीव तीन बार जन्म तिहि भवग्गहहि सिज्झिस्संति त्रिभिर्भवग्रहणः सेत्स्यन्ति भोत्स्यन्ते ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और बुझिस्संति मुच्चिस्संति मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति सर्वदुःखाना- परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं मन्तं करिष्यन्ति । अन्त करेंगे। करिस्संति। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy