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________________ समवानो ३५२ प्रकोणक समवाय : सू० १६१-१६४ १६१. एवं जहा ओगाहणासंठाणे ओरा- एवं यथा अवगाहनासंस्थानं औदारिक- १६१. इस प्रकार जैसे 'अवगाहना संस्थान' लियपमाणं तहा निरवसेसं । एवं प्रमाणं तथा निरवशेषम् । एवं यावत् । नामक प्रज्ञापना के इक्कीसवें पद में प्रतिपादित है कि 'मनुष्य की उत्कृष्ट जाव मणस्सेत्ति उक्कोसेणं तिण्णि मनुष्यस्येति उत्कर्षेण त्रीणि गव्यूतानि ।। अवगाहना तीन गाउ की है' तक गाउयाई। औदारिक का प्रमाण अविकलरूप से ज्ञातव्य है। भदन्त ! वैक्रियशरीरं १६२. भंते ! वैक्रियशरीर कितने प्रकार का १६२. कइविहे णं भंते ! वेउव्वियसरीरे पण्णत्ते? कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते- गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्- एकेन्द्रिय- गौतम ! वह दो प्रकार का हैएगिदियवेउब्वियसरीरेय वैक्रियशरीरं च पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरं एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर और पञ्चेन्द्रियपंचिदियवेउव्वियसरीरे य। च। वैक्रिय-शरीर। १६३. एवं जाव ईसाणकप्पपज्जत। एवं यावत्ईशानकल्पपर्यन्तम् । १६३. इस प्रकार प्रज्ञापना पद इक्कीस में वणित ईशान कल्प पर्यन्त वक्तव्य है। सणंकुमारे आढत्तं जाव अणत्तरा सनत्कुमारे आरब्धं यावत् अनुत्तरा भवधारणिज्जा तेसि रयणी रयणी भवधारणीया तेषां रनि: रत्निः परिपरिहायइ। हीयते। सनत्कुमार देवों के भवधारणीय शरीर की अवगाहना छह हाथ की है। वहां से अनुत्तर विमान तक के देवों के भवधारणीय शरीर की अवगाहना एकएक रत्नि हीन होती है। सरीरे? १६४. आहारयसरीरे णं भंते ! कइविहे अहारकशरीरं भदन्त ! कतिविधं १६४. भंते ! आहारक शरीर कितने प्रकार पण्णते? प्रज्ञप्तम् ? गोयमा ! एगाकारे पण्णत्ते। गौतम ! एकाकारं प्रज्ञप्तम् । गौतम ! वह एक आकार वाला है। जइ एगाकारे पण्णत्ते, किं मणुस्स- यदि एकाकारं प्रज्ञप्तं, कि मनुष्य- भंते ! यदि एक आकार वाला है तो आहारयसरीरे? अमणुस्सआहारय- आहारकशरीरम् ? अमनुष्यआहारक- क्या वह मनुष्य-आहारक-शरीर है या शरीरम् ? अमनुष्य-आहारक-शरीर ? गोयमा ! मणुस्सआहारयसरीरे, गौतम ! मनुष्यआहारकशरीरं, नो । गौतम ! वह मनुष्य-आहारक-शरीर है, णो अमणुस्सआहारगसरीरे। अमनुष्यआहारकशरीरम् । अमनुष्य-आहारक-शरीर नहीं है। जइ मणुस्सआहारयसरीरे, कि यदि मनुष्यआहारकशरीरं, कि । भंते ! यदि मनुष्य-आहारक-शरीर है गम्भवक्कंतियमणुस्सआहारग . गर्भावक्रान्तिक-मनुष्यआहारकशरीरम्? । तो क्या वह गर्भावक्रान्तिक-मनुष्यसरीरे? संमुच्छिममणुस्स- सम्मूच्छिममनुष्यआहारकशरीरम् ? आहारक-शरीर है या सम्मूर्च्छमआहारगसरीरे ? मनुष्य-आहारक-शरीर है ? गोयमा! गम्भवक्कंतियमणुस्त- गौतम ! गर्भावक्रान्तिकमनुष्यआहारक- गौतम ! वह गर्भावक्रान्तिक-मनुष्यआहारयसरीरे नो समुच्छिम- शरीरं, नो सम्मूच्छिममनुष्यआहारक- आहारकशरीर है, सम्मूर्छममनुष्यमणस्सआहारयसरीरे। शरीरम्। आहारक शरीर नहीं है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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