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________________ समवाश्रो ५ समवाय १ : टिप्पण जैसे, जिसकी आयु: स्थिति एक सागरोपम की है, वह एक पक्ष से आन, पान, उच्छवास, निःश्वास लेगा और उसमें एक हजार वर्ष से भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होगी । ' ५. भवसिद्धिक (भवसिद्धिया) जिनकी सिद्धि होने वाली होती है, वे जीव भवसिद्धिक कहलाते हैं । तात्पर्यार्थ में यह शब्द भव्य का वाचक है। मनुष्य का भव ही मुक्ति का उपादान कारण है, इसलिए यहां इस शब्द से मनुष्य अभिप्रेत है । सिद्धि के अनेक अर्थ हैं । उसका एक अर्थ है-मुक्ति, और दूसरा अर्थ है- आठ प्रकार की महान् ऋद्धियों की प्राप्ति । वे आठ प्रकार ये हैं- लधिमा, वशिता, ईशित्व, प्राकाम्य, महिमा, अणिमा, यत्रकामावसायित्व और प्राप्ति । ६. सूत्र ४६ : प्रस्तुत सूत्र में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत – ये चार शब्द हैं। ये एकार्थक होने पर भी इनका वाच्यार्थं भिन्न-भिन्न हैसिद्ध ऋद्धियों की प्राप्ति । बुद्ध — केवलज्ञान की प्राप्ति । मुक्त—कर्मबंधन से मुक्त | परिनिर्वृत-कर्म कृत विकारों से वियुक्त होने के कारण परम शांत ।' १. समवायांगवृत्ति पत्र ६,७ : स्थित्यनुसारेण च देवानामुछ्वासादयो भवन्तीति । २. समवायांगवृत्ति, पत्र ७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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