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समवाश्रो
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समवाय १ : टिप्पण
जैसे, जिसकी आयु: स्थिति एक सागरोपम की है, वह एक पक्ष से आन, पान, उच्छवास, निःश्वास लेगा और उसमें एक हजार वर्ष से भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होगी । '
५. भवसिद्धिक (भवसिद्धिया)
जिनकी सिद्धि होने वाली होती है, वे जीव भवसिद्धिक कहलाते हैं । तात्पर्यार्थ में यह शब्द भव्य का वाचक है। मनुष्य का
भव ही मुक्ति का उपादान कारण है, इसलिए यहां इस शब्द से मनुष्य अभिप्रेत है ।
सिद्धि के अनेक अर्थ हैं । उसका एक अर्थ है-मुक्ति, और दूसरा अर्थ है- आठ प्रकार की महान् ऋद्धियों की प्राप्ति । वे आठ प्रकार ये हैं- लधिमा, वशिता, ईशित्व, प्राकाम्य, महिमा, अणिमा, यत्रकामावसायित्व और प्राप्ति ।
६. सूत्र ४६ :
प्रस्तुत सूत्र में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत – ये चार शब्द हैं। ये एकार्थक होने पर भी इनका वाच्यार्थं भिन्न-भिन्न हैसिद्ध ऋद्धियों की प्राप्ति ।
बुद्ध — केवलज्ञान की प्राप्ति ।
मुक्त—कर्मबंधन से मुक्त |
परिनिर्वृत-कर्म कृत विकारों से वियुक्त होने के कारण परम शांत ।'
१. समवायांगवृत्ति पत्र ६,७ :
स्थित्यनुसारेण च देवानामुछ्वासादयो भवन्तीति ।
२. समवायांगवृत्ति, पत्र ७ ।
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