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________________ समवाश्रो पण्णविज्जति दंसिज्जति दंसिज्जति । सेत्तं अणुत्तरोवाइयदसाओ । ३२६ परूविज्जति प्रज्ञाप्यते प्ररूप्यते दर्श्यते निदर्श्यते निदंसिज्जति उपदर्श्यते । तदेता अनुत्तरोपपातिकदशाः । ६८. से किं तं पण्हावागरणाणि ? वारणे अट्ठत्तरं परिणसयं अट्ठत्तरं अपसिणसयं अट्ठत्तरं पण सणस विज्जाइसया, नागसुवर्णाहि सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जंति । महत्था आघविज्जति । विविहत्य भासा भासियाणं अतिसय-गुण-उवसम णाणप्पगारआयरिय भासियाणं वित्थरेणं - पण्हावागरणदसासु णं ससमयप्रश्नव्याकरणदशासु स्वसमयपरसमयपरसमय पण्णवय पत्तेयबुद्ध- प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्ध - विविधार्थभाषाभाषितानां अतिशय-गुण-उपशमज्ञानप्रकार आचार्य - भाषितानां विस्तरेण वीरमहर्षिभि: विविधविस्तरविविहवित्थर - भाषितानां च जगद्धितानां भासियाणं च जगहियाणं आदर्शाङ्गुष्ठबाहु - असि - मणिक्षौमा - अगं - बाहु-असि-मणि खोम दित्यादिकानां विविधमहाप्रश्नविद्याआतिच्चमातियाणं विविहमहा- मनः प्रश्नविद्या- दैवतप्रयोगप्रधानगुणप सिणविज्जा-मणपसिणविज्जा प्रकाशिकानां सद्भूतद्विगुणप्रभावनरdaruओगहाण - गुणप्पासियाणं गणमति विस्मयकारिणां सन्भूय विगुणप्पभाव नरगणमइ- अतिशयातीतकालसमये दमतीर्थकरोविम्हयकारीणं अतिसयमतीत - त्तमस्य स्थितिकरणकारणानां कालसमए दम तित्थकरुत्तमस्स दुरधिगमदुरवगाहस्य सर्वसर्वज्ञसम्मतस्य ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगम- बुधजनविवोधकरस्य प्रत्यक्षकप्रत्ययदुरवगाहस्स सव्वसव्वष्णुसम्मयस्स कराणां प्रश्नानां विविधगुणमहार्थाः बुहजण विबोहकरस्स पच्चक्खय- जिनवरप्रणीताः आख्यायन्ते । पच्चय करणं पण्हाणं विविहगुणजिणवरप्पणीया Jain Education International - - पावागरण णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडवत्तोओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगणीओ । अथ कानि तानि प्रश्नव्याकरणानि ? प्रश्नव्याकरणेषु अष्टोत्तरं प्रश्नशतं अष्टोत्तरं अप्रश्नशतं अष्टोत्तरं प्रश्नाप्रश्नशतं विद्यातिशयाः, नागसुपर्णैः साधं दिव्याः संवादा: आख्यायन्ते । - प्रश्नव्याकरणेषु परीताः वाचना: संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि संख्येयाः प्रतिपत्तय: संख्येया: वेष्टका: संख्येयाः श्लोका: संख्येया: निर्युक्तय: संख्येयाः संग्रहण्यः । For Private & Personal Use Only प्रकीर्णक समवाय: सू० ६८ आख्यान, प्रज्ञापन प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है । यह है अनुत्तरोपपातिक दशा । ६८. प्रश्नव्याकरण क्या है ? प्रश्नव्याकरण में एक सौ आठ प्रश्न", एक सौ आठ अप्रश्न", एक सौ आठ प्रश्न- अप्रश्न" विद्या के अतिशय " तथा नाग और सुपर्ण देवों के साथ हुए दिव्य संवादों का आख्यान किया गया है । इसमें स्व-समय और पर समय के प्रज्ञापक प्रत्येक बुद्धों द्वारा विविध अर्थवाली भाषा में भाषित, नाना प्रकार के अतिशय गुण और उपशम वाले आचार्यों द्वारा विस्तार से कथित तथा वीर महर्षियों द्वारा विविध विस्तार से कथित, जगत् के लिए हितकर, आदर्श, अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, वस्त्र और आदित्य आदि से सम्बन्धित विविध प्रकार की महाप्रश्नविद्याओं" और मनः प्रश्न- विद्याओं" के अधिष्ठायक देवों के प्रयोग - प्राधान्य से गुणों को प्रकाशित करने वाली, सद्भूत द्विगुण प्रभाव से मनुष्य गण की बुद्धि को विस्मत करने वाली, सुदूर अतीत काल में उपशम प्रधान उत्तम तीर्थंकर के स्थितिकरण (स्थापना) में कारणभूत, दुर्बोध, दुरवगाह तथा अबुधजन को प्रबोध देने वाले, सर्व सर्वज्ञों द्वारा सम्मत प्रवचन -तत्त्व का प्रत्यक्ष प्रत्यय कराने वाली प्रश्न- विद्याओं के, जिनवर -प्रणीत विविध गुण वाले महान् अर्थों का आख्यान किया गया है। प्रश्नव्याकरण की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेढा संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, निर्युक्तियां संख्यंय हैं और संग्रहणियां संख्ये हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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