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समवाश्र
भो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ सुणिह पायोवगओ य जो जहि, जत्तियाणि भत्ताणि छेत्ता अंतगडो मुणिवरो तम यो विप्पक्को, मोक्ख सुहमतरं च पत्ता |
एए अण्णे य वित्थाणं परूवेई |
अंतगडदसासु णं परिता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ ।
सेणं अंगाए अट्टमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्भवणा सत्त art दस उद्देणकाला दस समुद्देणकाला संखेज्जाई पयसय सहस्साई पथग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासवा कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परुविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति ।
एवमा अत्या एते अन्ये च एवमादयोऽर्थाः विस्तरेण प्ररूप्यन्ते ।
सज्ज उवदंसिज्जति 1
अंतगडदसाओ ।
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पर्यायों यावरच यथा पालितो मुनिभिः, प्रायोपगतश्च यो यत्र, यावन्ति भक्तानि छेदयित्वा अन्तकृतो मुनिवर: तमोरज-ओध-विप्रमुक्तः मोक्षसुखमनुत्तरं च प्राप्ताः ।
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अन्तकृतदशासु परीता: वाचनाः संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि संख्येया: प्रतिपत्तय: संख्येया: वेष्टकाः संख्पेया: श्लोका: संख्येया: नियुक्तय: संख्येयाः संग्रहण्यः ।
से एवं आया एवं णाया एवं अथ एवमात्मा एवं ज्ञाता एवं विज्ञाता विष्णाया एवं चरण-करण एवं चरण- करण- प्ररूपणा आख्यायते आघविज्जति, प्रज्ञाप्यते प्ररूप्यते दर्श्यते निदर्श्यते परूविज्जति उपदर्श्यते । तदेता अन्तकृतदशाः । निदंसिज्जति
परूवणया
पण विज्जति
1
सेत्तं
ताः अङ्गार्थतया अष्टममङ्गम् एकः श्रुतस्कन्धः दश अध्ययनानि सप्त वर्गाः दश उद्देशन कालाः दश समुदेशनकाला: संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण, संख्येयानि अक्षराणि अनन्ताः गमाः अनन्ताः पर्यवाः परीताः साः अनन्ताः स्थावराः शाश्वताः कृताः निबद्धा: निकाचिता: जिनप्रज्ञप्ताः भावा: आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते निदर्श्यन्ते उपदर्श्यन्ते ।
६७. से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अथ कास्ता: अनुत्तरोपपातिकदशाः ?
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प्रकीर्णक समवाय: सू० ६७
प्रकार केवलज्ञान की प्राप्ति होती है, जिस प्रकार मुनियों ने जितना पर्याय पाला, जिन्होंने प्रयोपगमन अनशन किया तथा जितने भक्तों (भोजन समयों) को छेद कर, तम और रज के प्रवाह से मुक्त होकर अन्तकृत हुए तथा अनुत्तर मोक्ष सुख को प्राप्त हुएइन सबका आख्यान किया गया है।
ये तथा इसी प्रकार के अन्य विषय इसमें विस्तार से निरूपित हैं ।
अन्तकृतदशा की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेढा संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं और संग्रहणियां संख्येय हैं ।
यह अंग की दृष्टि से आठवां अंग है । इसके एक श्रुतस्कंध, दस अध्ययन, सात वर्ग दस उद्देशन-काल, दस समुद्देशनकाल, पद-प्रमाण से संख्येय लाख पद ( तेईस लाख चार हजार), संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्यव हैं ।
इसमें परिमित बस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत कृत, निबद्ध और निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है ।
इसका सम्यक् अध्ययन करने वाला 'एवमात्मा' - अन्तकृत दशामय, एवं ज्ञाता' और 'एवं विज्ञाता' हो जाता है। इस प्रकार अन्तकृतदशा में चरणकरण प्ररूपणा का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। यह है अन्तकृतदशा ।
६७. अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ?
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