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समवाश्रो
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प्रकट - प्रदर्शितानां प्रकाशितानां
लोकालोकसंसारसमुद्र- रुन्द
पागड- पयं सियाणं लोगालोगपगासियाणं संसारसमुद्द-रुंद - उत्तरण-समत्थाणं सुरपति ( विस्तीर्ण) - उत्तरण - समर्थानां सुरपतिसंपूजया भविय - जणपय- संपूजितानां भव्य जनप्रजाहृदयाहिययाभिनंदियाणं तमरय भिनन्दितानां तमोरजोविध्वंसनानां विद्धसणाणं सुविट्ट-दोवभूय-ईहा- सुदृष्ट-दीपभूत-ईहा-मति-बुद्धि-वर्द्धनानां मतिबुद्धि-वद्धणाणं छत्तीससहस्स - षट्त्रिंशत्सहस्रान्यूनकानां व्याकरणानां दर्शनाः श्रुतार्थ बहुविधप्रकाराः शिष्यहितार्थाश्च गुणहस्ताः ।
मणयाणं वागरणाणं दंसणा सुयत्थ-बहुविप्पगारा सीसहियत्थाय गुणहत्था ।
विग्राहस्त णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पवित्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुओ संखेज्जाओ संगणीओ ।
से णं अंगट्टयाए पंचमे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे साइरेगे अज्झणसते दस उद्देगसहस्साई दस समुद्दे सगसहस्साइं छत्तीसं वागरणसहसाई चउरासीई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाई अक्खराई अनंता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासया कडा णिवद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति
परुविज्जति
पण्णविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति ।
परूवणया
पण्णविज्जति
दंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं वियाहे ।
व्याख्यायाः परीता वाचना: संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि संख्येयाः प्रतिपत्तयः संख्येया: वेष्टका: संख्येयाः श्लोकाः संख्येया: नियुक्तय: संख्येयाः संग्रहण्यः ।
से एवं आया एवं णाया एवं स एवमात्मा एवं ज्ञाता एवं विज्ञाता विष्णाया एवं चरण-करण एवं चरण-करण - प्ररूपणा आख्यायते आघविज्जति प्रज्ञाप्यते प्ररूप्यते दर्श्यते निदर्श्यते परूविज्जति उपदर्श्यते । सेयं व्याख्या |
निदंसिज्जति
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सा अङ्गार्थतया पञ्चमं अङ्गम् एकः श्रुतस्कन्धः एकसातिरेकं अध्ययनशतं दश उद्देशक सहस्राणि दश समुद्देशकसहस्राणि षट्त्रिंशद् व्याकरणसहस्राणि चतुरशीतिः पदसहस्राणि पदाग्रेण, संख्येयानि अक्षराणि अनन्ताः गमाः अनन्ता पर्यवाः परीतास्त्रसाः अनन्ताः स्थावराः शाश्वताः कृताः निबद्धा: निकाचिता: जिनप्रज्ञप्ताः भावाः आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते निदर्श्यन्ते उपदर्श्यन्ते ।
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प्रकीर्णक समवाय: सू० ६३
उपक्रम आदि विविध प्रकार से स्पष्टरूप से प्रदर्शित हैं। उन व्याकरणों में लोक और अलोक पर प्रकाश डाला गया है । वे इन्द्रों द्वारा पूजित ( श्लाघित हैं ) । वे भव्य प्रजा-जन के हृदय को आनन्द देने वाले हैं ! वे तम और रज का ध्वंस करने वाले हैं। वे सुदृष्ट होने के कारण दीप के समान प्रकाशी तथा ईहा, मति और बुद्धि के संवर्धक हैं । वे अर्थ- बोधरूप गुण की प्राप्ति कराने के लिए सिद्धहस्त हैं ।
व्याख्या की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेढा संख्येय हैं, श्लोक और संख्येय हैं, निर्युक्तियां संख्येय संग्रहणियां संख्येय हैं ।
यह अंग की दृष्टि से पांचवां अंग है । इसके एक श्रुतस्कंध, कुछ अधिक सौ अध्ययन ( शतक), दस हजार उद्देशक, दस हजार समुद्देशक, छत्तीस हजार व्याकरण, पद-प्रमाण से चौरासी हजार पद संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्यव हैं। इसमें परिमित त्रस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निबद्ध और निकाचित जिन - प्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है।
इसका सम्यक अध्ययन करने वाला 'एवमात्मा' - व्याख्यामय, 'एवं ज्ञाता' और 'एवं विज्ञाता' हो जाता है। इस प्रकार व्याख्या में चरण करण- प्ररूपणा का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। यह है व्याख्या |
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