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समवायो
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प्रकोणक समवाय : सू० ६२
इसमें कुछ पदार्थों की एक, दो, तीन, चार आदि के क्रम से एकोतरिका परिवृद्धि का प्रतिपादन किया गया है । इसमें द्वादशांग गणिपिटक का पल्लवपरिमाण (या पर्यव-परिमाण) बतलाया गया है। इसमें एक से सौ स्थानों तक तथा जगजीवों के लिए हितकर बारह प्रकार के विस्तार वाले भगवान् श्रुतज्ञान का संक्षेप में समाचार बणित किया गया
समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं समवाये एकादिकानां एकार्थानां एगुत्तरियपरिवुड्ढोय, दुवालसंगस्स एकोत्तरिकापरिवृद्धिश्च, द्वादशाङ्गस्य य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे च गणिपिटकस्य पल्लवाग्रं समनुगीयते, समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स स्थानकशतस्य द्वादशविधविस्तरस्य बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स श्रुतज्ञानस्य जगज्जीवहितस्य भगवतः जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समासेन समाचारः आख्यायते, तत्र च समायारे आहिज्जति, तत्थ य नानाविधप्रकारा: जीवाजीवाश्च णाणाविहप्पगारा जीवाजीवा य वणिता: विस्तरेण अपरेऽपि च वणिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविधाः विशेषाः नरक-तिर्यङ-मनुजबहुविहा विसेसा नरग-तिरिय- सुरगणानां आहारोच्छवास-लेश्यामणुय-सुरगणाणं आहारुस्सास- आवाससंख्या - आयत-प्रमाण- उपपातलेस- आवाससंख - आययप्पमाण च्यवन-अवगाहना-अवधि-वेदन-विधानउववाय • चयण - ओगाहणोहि- उपयोग-योग-इन्द्रिय-कषायाः, विविधा वेयण - विहाण - उवोग - जोग- च जीवयोनिः विष्कम्भोत्सेध-परिरयइंदिय-कसाय, विविहा य प्रमाणं विधिविशेषाश्च मन्दरादीनां । जीवजोणी विक्खंभुस्सेह-परिरय- महोधराणां कुलकर-तीर्थकर-गणधराणां । प्पमाणं विधिविसेसा य समस्तभरताधिपानां चक्रिणां चैव मंदरादीणं महोधराण कुलगर- चक्रधर-हलधराणां च वर्षाणां च तित्थगर-गणहराणं समतभरहा- निर्गमाश्च समायाः । हिवाण चक्कोणं चेव चक्कहरहलहराण य वासाण य निग्गमा य समाए।
इसमें नाना प्रकार के जीवों और अजीवों का विस्तार से वर्णन है। इनके अतिरिक्त इसमें और भी बहुत प्रकार के विशेष, जैसे-नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवगण के आहार, श्वासोच्छवास, लेश्या, आवासों की संख्या, उनकी लम्बाई-चौड़ाई आदि का प्रमाण, उपपात, च्यवन, अवगाहना, अवधिज्ञान, वेदना, भेद, उपयोग, योग, इन्द्रिय और कषाय का वर्णन है। इसमें विवध प्रकार की जीव-योनियों का, मन्दर आदि पर्वतों के विष्कंभ (विस्तार), उत्सेध (ऊंचाई) और परिधि का प्रमाण तथा पर्वतों के भेदों का वर्णन है। इसमें कुलकर, तीर्थङ्कर, गणधर, समग्न भरत के अधिपति चक्रवर्ती, चक्रधर (वासुदेव) और हलधर (बलदेव) का वर्णन है। इसमें भरत आदि क्षेत्रों का निर्गम (प्रत्येक क्षेत्र की पहले की अपेक्षा से अधिकता) बतलाया गया है।
एए अण्णे य एवमादित्य वित्थरेणं एते अन्ये च एवमादयः अत्र विस्तरेण अत्था समासिज्जंति।
अर्थाः समाश्रियन्ते।
इसमें इनका तथा इसी प्रकार के दूसरे पदार्थों का भी विस्तार से वर्णन हुआ
समवायस्सणं परित्ता वायणा समवायस्य परीताः वाचनाः संख्येयानि संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ अनुयोगद्वाराणि संख्येयाः प्रतिपत्तय: पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा संख्येयाः वेष्टकाः संख्येयाः श्लोकाः सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तोओ संख्येयाः नियुक्तयः संख्येयाः संग्रहण्यः । संखेज्जाओ संगहणोओ।
समवाय की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेढा संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं और संग्रहणियां संख्येय हैं।
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