SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टिप्पण १. प्रथम सूर्य-मंडल को कुछ अधिक है (पढमे सूरियमंडले “साधिकानि ..) कुछ अधिक का अर्थ है-६४० योजन अधिक ।' २. दूसरे सूर्य-मण्डल की कुछ अधिक है (दोच्चे सूरियमंडले 'साधिकानि.) कुछ अधिक का अर्थ है-६४५.३० योजन अधिक।' ३. तीसरे सूर्यमण्डल को कुछ अधिक है (तइए सूरियमंडले “साधिकानि ) कुछ अधिक का अर्थ है---६५१ . योजन अधिक ।' जम्बूद्वीप एक लाख योजन का है। उसके चारों ओर एक सौ अस्सी योजन प्रमाण तक सूर्य का मंडल-क्षेत्र है। जम्बूदीप के आयाम-विष्कंभ से (१८०४२) ३६० योजन कम करने पर (१०००००-३६०) ६६६४० योजन का प्रथम सूर्य-मंडल होता है । मंडलों के बीच का अन्तर दो-दो योजन का है और सूर्य विमान का विष्कंभ - योजन का है। इनका दुगुना (२६४२) ३४ होता है। दूसरे सूर्य-मंडल की लम्बाई-चौड़ाइ (१९६४०+५३५)६६६४५३१ योजन की है। इसी प्रकार तीसरे सूर्य-मंडल की लम्बाई-चौड़ाई (१६६४५३५+५३५) ६९६५१ ६, योजन की है । इसी प्रकार प्रत्येक मंडल में ५३५ योजन अधिक होता जाता है।' १. समवायांगवृत्ति, पत्र ६३ । २. वही, पन्न ६३ ३. वही. पत्र १३॥ 1. वही, पन ६३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy