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________________ ६९ रणवणउइइमो समवायो : निन्यानवेवां समवाय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. मंदरे णं पव्वए णवणउई मन्दरः पर्वतः नवनवति योजनसहस्राणि जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्तः । पण्णत्ते। १. मन्दर पर्वत निन्यानवे हजार योजन ऊंचा है। २. नंदणवणस्स णं पुरथिमिल्लाओ नन्दनवनस्य पौरस्त्यात् चरमान्तात् चरिमंताओ पच्चथिमिल्ले पाश्चात्य चरमान्त, एतत् नवनवति चरिमंते. एस ण णवणउडं योजनशतानि अबाधया अन्तरं जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे प्रज्ञप्तम् । पण्णत्ते। २. नन्दन वन के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर निन्यानवे सो योजन का है। ३. नंदणवणस्स णं दक्खिणिल्लाओ नन्दनवनस्य दाक्षिणात्यात् चरमान्तात् चरिमंताओ उत्तरिल्ले चरिमंते. उत्तरीयं चरमान्तं, एतत् नवनवति एस णं णवणउई जोयणसयाई योजनशतानि अबाधया अन्तरं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। प्रज्ञप्तम् । ३. नन्दन वन के दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर निन्यानवे सौ योजन का है। ४. पदमे सरियमंडले णवणउडं प्रथम सूर्यमण्डलं नवनवति योजन- जोयणसहस्साइं साइरेगाइं सहस्राणि सातिरेकाणि आयाम- आयामविक्खंभेणं पण्णते। विष्कम्भेण प्रज्ञप्तम् । ४. प्रथम सूर्य-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई निन्यानवे हजार योजन से कुछ अधिक ५. दूसरे सूर्य-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई निन्यानवे हजार योजन से कुछ अधिक . ५. दोच्चे सरियमंडले णवणउइं द्वितीयं सूर्यमण्डलं नवनवति जोयणसहस्साई साडियाडं योजनसहस्राणि साधिकानि आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्तम् । ६. तइए सरियमंडले णवणउइं तृतीयं सूर्यमण्डलं नवनवति जोयणसहस्साइं साहियाई योजनसहस्राणि साधिकानि आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्तम् । ६. तीसरे सूर्य-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई निन्यानवे हजार योजन से कुछ अधिक ७. इमोसे गं रयणप्पभाए पुढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अञ्जनस्य अंजणस्स कंडस्स हेट्रिल्लाओ काण्डस्य अधस्तनात् चरमान्तात् चरिमंताओ वाणमंतर-भोमेज्ज- वानव्यन्तर-भौमेयविहाराणां उपरितनं विहाराणं उवरिल्ले चरिमंते, एस चरमान्तं, एतत् नवनवति णं णवणउइं जोयणसयाई योजनशतानि अबाधया अन्तरं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। प्रज्ञप्तम्। ७. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अंजन कांड के नीचे के चरमान्त से वानमंतरों के भौमेय विहारों के उपरितन चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर निन्यानवे सौ योजन का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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