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________________ ६७ सत्तारणउइइमो समवाओ : सत्तानवेवां समवाय मूल संस्कृत छाया १. मंदरस्स णं पव्वयस्स मन्दरस्य पर्वतस्य पाश्चात्यात् पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ चरमान्तात् गोस्तूपस्य आवासपर्वतस्य गोथुभस्स णं आवासपव्वयस्स पाश्चात्यं चरमान्तं एतत् सप्तनवति पच्चत्थिमिले चरिमंते, एस णं योजनसहस्राणि सत्ताणउइं जोयणसहस्साइं अबहाए अंतरे पण्णत्ते । अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । २. एवं चउदिसिपि । एवं चतुर्दिक्षु अपि । ३. अट्टहं कम्मपगडीणं सत्ताणउई अष्टानां कर्मप्रकृतीनां सप्तनवतिः उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ । उत्तरप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः । Jain Education International ४. हरिसेणे णं राया चाउरंत हरिषेणः राजा चातुरन्तचक्रवर्ती चक्कवट्टी देसूणाई सत्ताणउई देशोनानि सप्तनवति वर्षशतानि वाससयाई अगारमज्भावसित्ता अगारमध्युष्य मुण्डो भूत्वा अगारात् मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारितां प्रव्रजितः । अणगारिअं पव्वइए । For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद १. मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के पश्चिमी अन्तर चरमान्त का व्यवधानात्मक सत्तानवे हजार योजन का है। २. मन्दर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से दकावभास आवास पर्वत के उत्तरी चरमान्त का मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त से शंख आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त का, मन्दर पर्वत के दक्षिणी चरमान्त से दकसीम आवास पर्वत के दक्षिणी चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर सत्तानवे - सत्तानवे हजार योजन का है। ३. आठों कर्म प्रकृतियों की प्रकृतियां सत्तानवे हैं । उत्तर ४. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा हरिषेण कुछ कम सत्तानवे सौ वर्षों तक अगारवास में रह कर, मुंड होकर, अगार अवस्था से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुए । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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