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टिप्पण
१. सूत्र २:
वायकुमार देवों के दक्षिण दिशा में पचास लाख और उत्तर दिशा में छियालीस लाख भवनावास होते हैं।' २. सूत्र ३:
जिसके द्वारा गाउ आदि का प्रमाण किया जाता है उसे 'व्यावहारिक दंड' कहते हैं। दंड चार हाथ का होता है। प्रत्येक हाथ चौबीस अंगुल का होता है, अतः प्रामाणिक दंड छियानबे अंगुल का होता है। अव्यावहारिक दंड का माप नियत नहीं होता । वह छोटा-बड़ा भी हो सकता है।' ३. छियानवे अंगुल को छाया (छण्णउइ-अंगुलछाए)
जब सूर्य आभ्यन्तर मंडल में रहता है तब दिन अठारह मुहूर्त का होता है। उस समय एक मुहूर्त बारह अंगुल वाले शंकु के प्रमाण से छियानवे अंगुल की छाया वाला होता है। छाया-गणित के अनुसार शंकु की लम्बाई को मुहूत्तों की संख्या से गुणित किया जाता है-१८x१२%=२१६ । इसका आधा करने पर १०८ आते हैं। इसमें शंकु का प्रमाण (१२ अंगुल) निकालने पर शेष छियानवे रहते हैं।'
१. समवायांगवृत्ति, पन्न ६१:
वायकुमाराणां षण्णवतिभवनलक्षाणि, दक्षिणस्यां पञ्चाशत उत्तरस्यां च षट्चत्वारिंशतो भावादिति । १. समवायांगवृत्ति, पत्न ६१ : व्यावहारिको येन गव्यूतादि प्रमाण चिन्त्यते, अव्यावहारिकस्तु लघुः दीर्घा वा भवत्युक्तप्रमाणात्, दण्डो हि चतु:कर उक्त:, करश्चतुर्विशत्यंगुल: एवं
चतुर्विशतौ चतुर्गुणितायां षण्णवतिः स्यादेवेति । ३. समवायांगवृत्ति, पन ११
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