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टिप्पण
१. पंचानवे-पंचानवे प्रदेशों का (पंचाणउई-पंचाणउइं पदेसाओ)
लवण समुद्र के मध्य भाग में दस हजार योजन प्रमाण क्षेत्र है। उसकी गहराई समभूतल से हजार योजन की है। वहां से जब हम पंचानवे प्रदेश आगे बढ़ते हैं तब गहराई में एक प्रदेश की हानि होती है। इस प्रकार एक-एक प्रदेश की हानि होते-होते जब हम पंचानवे हजार योजन प्रमाण क्षेत्र का उल्लंघन करते हैं तब एक हजार योजन प्रमाण गहराई की हानि होती है।
इसी प्रकार लवण समुद्र के मध्य भाग की अपेक्षा से समुद्रतट की ऊंचाई एक हजार योजन की है। वहां समभूतलरूप समुद्रतट से जब हम पंचानवे प्रदेश आगे जाते हैं तब ऊंचाई में एक प्रदेश की हानि होती है। इस क्रम से जब पंचानवे हजार
योजन प्रमाण क्षेत्र का उल्लंघन होता है तब एक हजार योजन प्रमाण ऊंचाई की हानि होती है।' २. पंचानवे हजार वर्षों के सर्व आयुष्य का (पंचाणउई वाससहस्साई परमाउं)
कुमारावस्था- २३७५० वर्ष मांडलिक राजा- २३७५० वर्ष चक्रवर्ती- २३७५० वर्ष प्रव्रज्या अवस्था- २३७५० वर्ष
कुल योग ६५००० वर्ष ३. पंचानवे वर्षों के सर्व आयुष्य का (पंचाणउइवासाइं सव्वाउयं)
गृहस्थावस्था -६५ वर्ष छद्मस्थावस्था –१४ वर्ष केवली अवस्था -१६ वर्ष
कुल योग ६५ वर्ष
१. समवायोगवृत्ति, पत्र १ २. वही, पत्र ६१ ३. वही, पत्न ६१
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