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________________ ६५ पंचाउ इमो समवाओ : पंचानवेवां समवाय मूल संस्कृत छाया १. सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउहं सुपार्श्वस्य अर्हतः पञ्चनवतिः गणाः गणा पंचाणउ गहरा होत्था । पञ्चनवतिः गणधराः आसन् । २. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्त चरिमंताओ जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य चरमान्तात् चउद्दिसि लवणसमुद्दे पंचाणउई चतुर्दिक्षु लवणसमुद्रं पञ्चनवतिपंचा उ जोयणसहस्साई पञ्चनवति योजनसहस्राणि अवगाह्य ओगाहित्ता चत्तारि महापायाला चत्वारः महापातालाः प्रज्ञप्ताः, पण्णत्ता, तं जहा- वलयामुहे तद्यथा - वडवामुखः केतुकः यूपकः, har जूते ईसरे । ईश्वरः । उभयपार्श्वतः ३. लवणसमुद्दस्स उभओ पासंपि लवणसमुद्रस्य पंचाण उई-पंचाणउ पदेसाओ पञ्चनवतिः पञ्चनवतिः प्रदेशाः उस्सेहपरिहाणीए पण्णत्ताओ । उद्वेधोत्सेधपरिहान्या प्रज्ञप्ताः । ४. कुंथू णं अरहा पंचाणउ कुन्थुः अर्हन् पञ्चनवति वर्षसहस्राणि वाससहस्साई परमाउं पालइत्ता परमायुः पालयित्वा सिद्धः बुद्धः मुक्तः सिद्धे बुद्ध मुत्ते अंतगडे अन्तकृतः परिनिर्वृतः सर्वदुःखप्रहीणः । परिणठवडे सव्वदुक्खप्पहीणे । ५. थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउइवासाई स्थविर : मौर्यपुत्रः पञ्चनवति वर्षाणि सव्वाजयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे सर्वायुः पालयित्वा सिद्ध: बुद्ध: मुक्तः मुत्ते अंतगड़े परिणिबुडे अन्तकृतः परिनिर्वृतः सर्वदुःखप्रहीणः । सव्वदुक्खपहीणे । Jain Education International For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद १. अर्हत् सुपार्श्व के पंचानवे गण और पंचानवे गणधर थे । २. जम्बूद्वीप द्वीप के चरमान्त से चारों दिशाओं में लवण समुद्र का पंचानवेपंचानवे हजार योजन अवगाहन करने पर वहां चार महापाताल कलश हैं, जैसे -- वडवामुख, केतुक, यूपक और ईश्वर । ३. लवण समुद्र के दोनों पाश्र्वों (नीचे) और ऊपर) में पंचानवे -पंचानवे प्रदेशों का' अतिक्रमण करने पर गहराई या ऊंचाई के रूप में एक-एक प्रदेश की हानि होती है । ४. अर्हतु कुन्थु पंचानवे हजार वर्षों के सर्व आयुष्य का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए । ५. स्थविर मौर्यपुत्र पंचानवे वर्षों के सर्व आयुष्य का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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