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एक्कारणउइइमो समवायो : इक्यानबेवां समवाय
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद १. एक्काणउई परवेयावच्च- एकनवतिः परवैयावृत्त्यकर्मप्रतिमाः १. दूसरों के वैयावृत्यकर्म की प्रतिमाएं कम्मपडिमाओ पण्णत्ताओ। प्रज्ञप्ताः ।
इक्यानबे हैं। २. कालोए णं समुद्दे एक्काणउई कालोदः समुद्रः एकनवति योजनशत- २. कालोद समुद्र का परिक्षेप इक्यानबे
जोयणसयसहस्साइं साहियाइं सहस्राणि साधिकानि परिक्षेपेण लाख योजन से कुछ अधिक है। परिक्खेवेणं पण्णत्ते।
प्रज्ञप्तः । ३. कुंथुस्स णं अरहओ एक्काणउई कुन्थोः अर्हतः एकनवतिः आधोवधिक- ३. अर्हत् कुन्थु के इक्यानवे सौ आधोवधिक अहोहियसया होत्था। शतानि आसन् ।
ज्ञानी थे। ४. आउय-गोय-वज्जाणं छण्हं आयुष्य-गोत्र-वर्जानां षण्णां ४. आयुष्य और गोत्रकर्म को छोड़ कर कम्मपगडीणं एक्काणउई कर्मप्रकृतीनां एकनवतिः उत्तरप्रकृतयः शेष छह कर्म-प्रकृतियों की उत्तरउत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। प्रज्ञप्ताः ।
प्रकृतियां इक्यानबे हैं।
टिप्पण
१. दूसरों के वैयावृत्यकर्म की प्रतिमाएं इक्यानबे (एक्काणउई परवेयावच्चकम्मपडिमाओ)
वैयावृत्यकर्म का अर्थ है-भक्त, पान आदि का सहयोग देने की प्रवृत्ति और प्रतिमा का अर्थ है-अभिग्रह । वृत्तिकार के अनुसार इक्यानबे प्रतिमाओं का विवरण कहीं भी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने संभावित रूप में इक्यानबे प्रकारों का उल्लेख किया है।
दर्शनगुण से विशिष्ट व्यक्तियों के प्रति दस प्रकार का शुश्रूषा विनय होता है-सत्कार, अभ्युत्थान, सम्मान, आसनाभिग्रह, आसन-अनुप्रदान, कृतिकर्म, अंजलिप्रग्रह, अभिमुख गमन, स्थिरवास वालों की पर्युपासना और पहुंचाने जाना।
अनाशातना विनय साठ प्रकार का है—तीर्थङ्कर, धर्म, आचार्य, वाचक, स्थविर, कुल, गण, संघ, सांभोगिक, क्रिया, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान-इन पन्द्रह की अनाशातना, भक्ति, बहमान और वर्णवाद करना।
औपचारिक विनय के सात प्रकार हैं१. अभ्यास-आसन-गुरू के समीप बैठना। २. छन्दोनुवर्तन----गुरू के अभिप्राय के अनुसार चलना । ३. कृत-प्रतिकृति-प्रसन्न होने पर गुरू सूत्र आदि की वाचना देंगे-ऐसा मान कर शुश्रुषा करना । ४. कारितनिमित्तकरण-शास्त्र का सम्यक अध्ययन कराने पर विशेष विनय करना।
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