________________
समवाना
२८७
समवाय ६१ : टिप्पण
५. दुःखार्तगवेषण-दुःख से पीड़ित व्यक्तियों के दुःख की गवेषणा करना। ६. देश-काल को जानना। ७. सर्वार्थ-अनुमति-सब विषयों में अनुमति देना।
वैयावृत्य चौदह प्रकार का है-प्रव्राजनाचार्य, दिगाचार्य, उद्देशाचार्य, समुद्देशाचार्य, वाचानाचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष, सार्मिक, कुल, गण, संघ-इन चौदह की वैयावृत्य करना।'
इस प्रकार विनय के कुल प्रकार (१०+६०-७+१४) ६१ होते हैं। २. इक्यानबे लाख योजन से कुछ अधिक (एक्काणउई जोयणसयसहस्साई साहियाइं)
कुछ अधिक से यहां ७०६०५ योजन, १७१५ धनुष्य और साधिक ८७ अंगुल ग्रहण किया गया है।'
१. समवायांगवृत्ति, पत्र ८८, ८६:
परेषां-पात्मव्यतिरिक्तानां यावत्यकर्माणि-भक्तपानादिभिरुपष्टम्मक्रियास्तद् विषयाः प्रतिमा:-अभिग्रहविशेषाः........", एतानि च प्रतिमात्वेनाभिहितानि क्वचिदपि मोपलब्धानि, केवलं विनयवैयावृत्यभेदा एते संभवन्ति, ....." इत्येकनवतिविनयभेदा एते एव अभिग्रहविषयीभता: प्रतिमा
उच्यन्ते इति । २. समवायांगवृत्ति, पत्न ८६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org