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६० एउइइमो समवायो : नब्बेवां समवाय
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद १. सीयले णं अरहा नउई धणूई उड्ढं शीतलः अर्हन् नवति धषि १. अर्हत् शीतल नब्बे धनुष्य ऊंचे थे। उच्चत्तेणं होत्था।
ऊर्ध्वमुच्चत्वेन आसीत् । २. अजियस्स णं अरहो नउइं गणा अजितस्य अर्हतः नवति: गणाः नवतिः २. अर्हत् अजित के नब्बे गण और नब्बे नउइं गणहरा होत्था। गणधराः आसन् ।
गणधर थे। ३. संतिस्स णं अरहओ नउई गणा शान्तेः अर्हतः नवतिः गणा: नवतिः ३. अर्हत् शान्ति के नब्बे गण और नब्बे नउई गणहरा होत्था। गणधराः आसन् ।
गणधर थे। ४. सयंभुस्स ण वासुदेवस्स स्वयंभुवः वासुदेवस्य नवतिवर्षाणि ४. वासुदेव स्वयम्भू नब्बे वर्षों तक दूसरे णउइवासाइं विजए होत्था। विजय आसीत् ।
राज्यों को जीतने में लगे रहे। ५. सव्वेसि णं वट्टवेयड्ढपव्वयाणं सर्वेषां वृत्तवैताढ्यपर्वतानां उपरितनात् ५. सभी वृत्तवताढय पर्वतों के उपरितन
उवरिल्लाओ सिहरतलाओ शिखरतलात सौगन्धिककाण्डस्य शिखरतल से सौगंधिक कांड के नीचे सोगंधियकंडस्स हेदिल्ले चरिमंते, अधस्तनं चरमान्तं, एतत् नवति के चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर एस णं नउइं जोयणसयाइं योजनशतानि अबाधया अन्तरं नौ हजार योजन का है। अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। प्रज्ञप्तम् ।
टिप्पण
१. सूत्र २,३
आवश्यकनियुक्ति में अजित के पचानवे गण और पचानवे गणधर बतलाए हैं तथा शांति के छत्तीस गण और छत्तीस गणधर बतलाए हैं। समवायांगवृत्ति के अनुसार ये दोनों मतान्तर हैं।'
१.प्रावश्यकनियुक्ति, गा० २६६, प्रवचूणि प्रथम विभाग, पृ० २१०। २. वहो, गा० २६७, प्रवचूणि प्रथम विभाग, पु० २११ । ३. समवायांगवत्ति, पत्न८८:
...."पावश्यके तु पञ्चनवतिरजितस्य षट्त्रिंशत् तु शान्तेरुक्तास्तदिदमपि मतान्तरमिति ।
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