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टिप्पण
१. सूत्र ३
हरिषेण दसवें चक्रवर्ती थे। उनका संपूर्ण आयु दस हजार वर्ष का था। उन्होंने नवासी सौ वर्षों तक राज्य किया और ग्यारह सौ वर्षों तक कुमार-अवस्था, मांडलिक राजा तथा मुनि के रूप में रहे।' समवाय ६७/८ में उनका सम्पूर्ण गृहवास सतानवें सौ वर्ष बताया है। इसका तात्पर्य है कि वे तीन सौ वर्षों तक मुनि के रूप में रहे। वृत्तिकार का कथन है कि
उनकी गृहस्थ-पर्याय सतानवे सौ वर्षों से कुछ कम (देशोनानि) और प्रव्रज्या-काल तीन सौ वर्षों से कुछ अधिक का था। २. नवासी हजार आर्याओं (एगूणणउई अज्जसाहस्सीओ)
आवश्यकनिर्यक्ति में इनकी साध्वी-सम्पदा ६१६०० बतलाई है । समवायांग के वृत्तिकार ने इसे मतान्तर माना है।
१. समवायांगवृत्ति, पत्र ८८ : हरिषेणचक्रवर्ती दशमस्तस्य च दश वर्षसहस्राणि सर्वायुस्तन च शतोनानि नव सहस्त्राणि राज्यं शेषाण्येकादश शतानि कुमारत्वमाण्डलिकत्वानगारत्वेष
प्रवसेयानि। २. समवायांगवृत्ति, पत्र १२:
हरिषेणो दशमचक्रवर्ती देशोनानि सप्तनवति वर्षशतानि गृहमध्युषितस्त्रीणि चाधिकानि प्रव्रज्या पालितवान् दशवर्षसहस्रत्वात् तदायुष्कस्येति । 1. आवश्यकनियुक्ति, गा० २८४, भवणि प्रथम विभाग, पृ. २०५। १.समवायांगवृत्ति, पन्न ८८।
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