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________________ एगूणणउइइमो समवाओ : नवासिवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. उसभे णं अरहा कोसलिए इमोसे ऋषभः अर्हन् कौशलिकः अस्याः १. कौशलिक अर्हत् ऋषभ इस अवसर्पिणी ओसप्पिणीए ततियाए समाए अवसपिण्याः तृतीयायाः समायाः के तीसरे-सुषम-दुःषमा आरे के पच्छिमे भागे एगणणउइए पश्चिमे भागे एकोननवत्यां अर्द्धमासेषु पश्चिम भाग (अन्त) में, नवासी अद्धमासेहिं सेसेहि कालगए शेषेषु कालगत: व्यतिक्रान्तः समुद्यातः अर्द्धमास शेष रहने पर कालगत हुए, वीइक्कंते समुज्जाए छिन्नजातिजरामरणबन्धन: सिद्धः बुद्धः संसार का पार पा गए, ऊर्ध्वगामी छिण्णजाइजरामरणबंधणे सिद्धे मुक्तः अन्तकृतः परिनिर्वृतः हुए, जन्म, जरा और मरण के बन्धन बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे सर्वदुःखप्रहीणः । को छिन्न कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, सव्वदुक्खप्पहीणे। अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए। २. समणे भगवं महावोरे इमोसे श्रमणः भगवान महावीरः अस्याः ओसप्पिणीए चउत्थीए समाए अवसपिण्याः चतुर्थ्याः समायाः पश्चिमे पच्छिमे भागे एगूणणउइए भागे एकोननवत्यां अर्द्धमासेषु शेषेषु अद्धमासेहिं सेसेहि कालगए कालगतः व्यतिक्रान्तः समुद्यात्: वोइक्कते समुज्जाए छिण्णजाइ- छिन्नजातिजरामरणबन्धनः सिद्धः बुद्धः जरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते मुक्तः अन्तकृतः परिनिर्वृतः अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख- सर्वदुःखप्रहीणः । प्पहोणे। २. श्रमण भगवान् महावीर इस अवसर्पिणी के चौथे-दुःषम-सुषमा-आरे के पश्चिम-भाग (अन्त) में, नवासी अर्द्धमास शेष रहने पर कालगत हुए, संसार का पार पा गए, ऊर्ध्वगामी हुए, जन्म, जरा और मरण के बन्धन को छिन्न कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा सर्व दु:खों से रहित हुए। ३. हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी हरिषेण: राजा चातुरन्तचक्रवर्ती ३. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा हरिषेण एगूणणउई वाससयाई महाराया एकोननवति वर्षशतानि महाराजः नवासी सौ वर्षों तक महाराज रहे ।' होत्था। आसीत् । ४. संतिस्स णं अरहओ एगूणणउई शान्तेः अर्हत: एकोननवतिः ४. अर्हत् शान्ति की उत्कृष्ट साध्वीअज्जासाहस्सीओ उक्कोसिया आर्यासाहयः उत्कृष्टा आर्यासम्पद् सम्पदा नवासी हजार आर्याओं की अज्जासंपया होत्था। आसीत् । थी। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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