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________________ समवायो २८१ समवाय ८८: सू. ३-८ ३. मन्दर पर्वत के पूर्वीय चरमान्त से गोस्तूप आवास-पर्वत के पूर्वीय चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर अठासी हजार योजन का है। ३. मंदरस्स णं पध्वयस्स मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्यात् परथिमिल्लाओ चरिमंताओ चरमान्तात् गोस्तूपस्य आवासपर्वतस्य गोथभस्स आवासपव्वयस्स पौरस्त्यं चरमान्तं, एतत अष्टाशीति परथिमिल्ले चरिमंते, एस णं योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं अट्टासीइं जोयणसहस्साइं प्रज्ञप्तम्।। अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ४. मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणि- मन्दरस्य पर्वतस्य दाक्षिणात्यात् ल्लाओ चरिमंताओ दओभासस्स चरमान्तात् दकावभासस्य आवासआवासपव्वयस्स दाहिणिल्ले पर्वतस्य दाक्षिणात्यं चरमान्तं, एतत चरिमंते, एसणं अदासीइंजोयग- अष्टाशीति योजनसहस्राणि अबाधया सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्तं। अन्तरं प्रज्ञप्तम् । ५ मंदरस्स पव्वयस्स मन्दरस्य पर्वतस्य पाश्चात्यात् चरमा- पच्चथिमिल्लाओ चरिमंताओ न्तात शंखस्य आवासपर्वतस्य पाश्चात्यं संखस्स आवासपव्वयस्स चरमान्तं, एतत अष्टाशीति पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस णं योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं अट्रासीइं जोयणसहस्साई प्रज्ञप्तम् । अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ४. मन्दर पर्वत के दक्षिणी चरमान्त से दकावभास आवास-पर्वत के दक्षिणी चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर अठासी हजार योजन का है। ५. मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से शंख आवास-पर्वत के पश्चिमी चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर अठासी हजार योजन का है। ६. मन्दर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से दकसीम आवास-पर्वत के उत्तरी चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर अठासी हजार योजन का है। ६. मंदरस्स णं पव्वयस्स मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरीयात् उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ चरमान्तात दकसोमस्य आवासपर्वतस्य दगसीमस्स आवासपव्वयस्स उत्तरीयं चरमान्तं, एतत् अष्टाशीति उत्तरिल्ले चरिमंते, एस ण योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं अट्ठासीइं जोयणसहस्साइं प्रज्ञप्तम् । अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ७. बाहिराओ णं उत्तराओ कट्ठाओ बाह्यायाः उत्तरस्याः काष्ठायाः सूर्यः सरिए पढम छम्मासं अयमोणे प्रथमं षण्मासं आयान चतुश्चत्वाचोयालीसइममडलगते अट्रासोति रिंशत्तममण्डलगत: अष्टाशोर्ति इगसट्ठिभागे मुहत्तस्स दिवसखेतस्स एकषष्ठिभागान् मुहर्तस्य दिवसक्षेत्रस्य निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स निवर्य, रजनीक्षेत्रस्य अभिनिवऱ्या अभिनिवुड्ढेत्ता सूरिए चारं सूर्यः चारं चरति । चरइ। ७. सर्वाभ्यन्तर मंडलात्मक उत्तर दिशा से पहले छह मास तक दक्षिणायन की ओर गति करता हुआ सूर्य जब चौवालीसवें मण्डल में आता है तब मुहूर्त प्रमाण दिवस-क्षेत्र की हानि तथा मुहूर्त प्रमाण रात्री-क्षेत्र की वृद्धि करता हुआ गति करता है। ८. दक्षिण दिशा से दूसरे छह मास तक उत्तरायण की ओर गति करता हुआ सूर्य जब चौवालीसवें मंडल में आता है तब , मुहूर्त प्रमाण रात्री-क्षेत्र की हानि तथा 5, मुहूर्त प्रमाण दिवसक्षेत्र की वृद्धि करता हुआ गति करता ८. दक्षिणकट्ठाओ णं सूरिए दोच्चं दक्षिणकाष्ठायाः सूर्यः द्वितीयं षण्मासं छम्मासं अयमीणे चोयालीसतिम- आयान् चतुश्चत्वारिंशत्तममण्डलगत: मंडलगते अदासीई इगसद्रिभागे अष्टाशीति एकषष्ठिभागान महतस्य मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रजनीक्षेत्रस्य निवऱ्या, दिवसक्षेत्रस्य विवसखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता अभिनिवर्ध्य सूर्यः चारं चरति । णं सूरिए चार चरइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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