SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ अट्ठासीइइमो समवानो : अठासिवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स एकैकस्य चन्द्रमःसूर्यस्य अष्टाशीतिः अट्ठासीई-अट्ठासीई महग्गहा अष्टाशीति: महाग्रहाः परिवारः परिवारो पण्णतो। प्रज्ञप्तः। १. प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के अठासीअठासी महाग्रहों का परिवार है।' २. दिट्टिवायस्स णं अट्ठासीइं सुत्ताई दृष्टिवादस्य अष्टाशोति: सूत्राणि २. दृष्टिवाद के सूत्र अठासी हैं, जैसे पण्णत्ताई, तं जहा-उज्जसूयं प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-ऋजुसूत्रं ऋजुसूत्र, परिणतापरिणत, बहुभंगिक, परिणयापरिणयं बहभंगियं परिणतापरिणतं बहभडिकं विजय- विजयचरित, अनन्तर, परंपर, सामान विजयचरियं अणंतरं परंपरं चरितं अनन्तरं परम्परं सामानं (सत्) (सत्), संयूथ, संभिन्न, यथात्याग, सामाणं संजहं संभिण्णं आहच्चायं संयूथं संभिन्नं ययात्यागं सोवस्तिकः सौवस्तिकघंट, नन्दावर्त्त, बहुल, पृष्टासोवत्थियं घंटं नंदावतं बहुलं घण्ट: नन्दावतः बहुल: पृष्टापृष्टः पृष्ट, व्यावर्त, एवंभूत, व्यावतं, ट्रापुठं वियावत्तं एवंभूयं व्यावतः एवंभूत: यावर्तः वर्तमानपदं वर्तमानपद, समभि दुयावत्तं वत्तमाणुपयं समभिरूढं समभिरूढः सर्वतोभद्रं पन्यासः । पन्यास, दुष्प्रतिग्रह । सव्वओभदं पण्णासं दुप्पडिग्गहं। दुष्प्रतिग्रहः । इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताइं इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि ये बाईस सूत्र स्व-समय-परिपाटी छिण्णच्छेयनइयाणि ससमयसुत्त- छिन्नच्छेदनयिकानि स्वसमयसूत्र- (जैनागम पद्धति) के अनुसार परिवाडीए। परिपाट्या। छिन्नछेद-नयिक होते हैं। इच्चेइयाई बावीसं सत्ताइं इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि अच्छिण्णच्छेयनइयाणि आजीविय- अच्छिन्नच्छेदनयिकानि आजीवकसूत्र- सुत्तपरिवाडीए। परिपाट्या। ये बाईस सूत्र आजीवक परिपाटी के अनुसार अछिन्नछेद-नयिक होते हैं। इच्चेइयाई बावीसं सुताई इत्येतानि द्वाविंशति: सूत्राणि त्रिक- तिगनइयाणि तेरासियसुत्त- नयिकानि त्रैराशिकसूत्रपरिपाट्या। परिवाडीए। ये बाईस सूत्र पैराशिक परिपाटी के अनुसार त्रिक-नयिक होते हैं। इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताइं इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि चउक्कनइयाणि ससमयसुत्त- चतुष्कनयिकानि स्वसमयसूत्रपरि- परिवाडीए। पाट्या । ये बाईस सूत्र स्व-समय-परिपाटी के अनुसार चतुष्क-नयिक होते हैं। एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीइ एवमेव सपूर्वापरेण अष्टाशीतिः सूत्राणि सूत्ताई भवंति त्ति मक्खायं। भवंतीति आख्यातम् । इन सबका योग करने पर अठासी सूत्र होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy