SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवानो २७६ ६. महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ महाहिमवत्कूटस्य उपरितनात् चरिमंताओ सोगंषियस्स कंडस्स चरमान्तात् सौगन्धिकस्य काण्डस्य हेटिल्ले चरिमंते, एस णं अधस्तनं चरमान्तं, एतत् सप्ताशीति सत्तासीइं जोयणसयाई अबाहाए योजनशतानि अबाधया अन्तरं अंतरे पण्णत्ते। प्रज्ञप्तम् । समवाय ८७ : सू० ६-७ ६. महाहिमवंत कूट के उपरितन चरमान्त से सौगंधिक कांड के नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर सत्तासी सौ योजन का है। ७. एवं रुप्पिकूडस्सवि। एवं रुक्मिकूटस्यापि। ७. रुक्मीकूट के उपरितन चरमान्त से सौगंधिक कांड के नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर सत्तासी सौ योजन का है। टिप्पण १. उत्तर-प्रकृतियां सत्तासी (सत्तासीई उत्तरपगडीओ) ज्ञानावरणीय और अन्तराय कर्म की उत्तर-प्रकृतियों को छोड़कर शेष छह कर्मों की उत्तर-प्रकृतियां इस प्रकार हैंदर्शनावरणीय कर्म की-6 वेदनीय कर्म की -२ मोहनीय कर्म की -२८ आयुष्य कर्म की -४ नाम कर्म की -४२ गोत्र कर्म की कुल योग ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy