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________________ छलसीइइमो समवायो : छियासिवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ सुविधेः पुष्पदन्तस्य अर्हत: षडशीतिः १. अर्हत् सुविधि पुष्पदंत के छियासी गण छलसीइंगणा छलसोई गगहरा गणाः षडशोतिः गणधराः आसन् । और छियासी गणधर' थे। होत्था। थे। २. सुपासस्स णं अरहओ छलसीइं सुपार्श्वस्य अर्हतः षडशीतिः २. अर्हत् सुपार्श्व के छियासी सौ वादी वाइसया होत्था। वादिशतानि आसन् । ३. दोच्चाए णं पुढवीए द्वितीयायाः पृथिव्याः बहुमध्यदेश- ३. दूसरी पृथ्वी के बहुमध्यदेशभाग से बहमज्झदेसभागाओ दोच्चस्स भागात् द्वितीयस्य घनोदधेः अधस्तनं दूसरे घनोदधि के नीचे के चरमान्त का घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस चरमान्तं, एतत् षडशीति योजनसह- व्यवधानात्मक अन्तर छियासी हजार णं छलसीइं जोयणसहस्साई स्राणि अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् । योजन का है। अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। टिप्पण १. छियासी गण और छियासी गणधर (छलसीइंगणा छलसोई गणहरा) आवश्यकनियुक्ति में इनके अठासी गण और अठासी गणधर बतलाए हैं।' १ मावश्यकनियुक्ति, गा० २६६, भवणि, प्रथम विभाग. ५. २१०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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