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समवानो
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समवाय ८५ : टिप्पण
आचारचूला
इसकी चार चूलिकाओं के उद्देशन-काल इस प्रकार हैं। पहली चूलिका के सात अध्ययनों के पचीस उद्देशक और पचीस उद्देशन-काल क्रमशः ये हैं-११, ३, ३, २, २, २, २-२५ ।
दूसरी चूलिका के सात अध्ययन हैं और प्रत्येक अध्ययन का एक-एक उद्देशन-काल है-७। तीसरी और चौथी चूलिका का एक-एक अध्ययन और एक-एक उद्देशन-काल है-२।
इस प्रकार सारे उद्देशन-काल ५१+२५+७+१+१=८५ होते हैं।' २. घातकोषंड 'मेरु पर्वत (धायइसंडस्समंदरा)
__धातकीषंड के मेरुपर्वत एक हजार योजन भूमि में तथा चौरासी हजार योजन ऊंचे हैं। दोनों का योग करने पर पचासी हजार योजन होते हैं। वृत्तिकार का कथन है कि इसी प्रकार पुष्करार्द्ध के मेरुपर्वतों का पूर्ण परिमाण भी ८५-८५
हजार योजन है। किन्तु सूत्रकार ने इसका उल्लेख नहीं किया है। सूत्र की प्रतिपादन शैली विचित्र होती है।' ३. मांडलिक पर्वत (मंडलियपव्वए)
रुचक तेरहवां द्वीप है। उसके अन्दर प्राकार की आकृति वाला रुचक द्वीप के दा विभाग करने वाला रुचक नाम का पर्वत है। वह मंडलाकार से स्थित है, इसीलिए इसे 'मांडलिक-पर्वत' कहा गया है। यह एक हजार योजन भूमि में और चौरासी हजार योजन ऊपर है।'
१. समवायांगवृत्ति, पन ८६ २. समवायांगवृत्ति, पत्र ०६: घातकीखंडमन्दरी सहस्त्रमवगाढो चतुरशीतिसहस्त्राण्युच्छ्रिताविति पञ्चाशीतियोजनसहस्त्राणि सर्वाग्रेण भवतः, पुष्करार्द्धमन्दरावप्येवं, नवरं सूत्रे नाभिहिती विचित्रत्वात् सूत्रगतेरिति । ३. समवायांगवृत्ति, पत्र ८६ : रुचको-रुचकाभिधानस्त्रयोदशद्वीपान्तर्गतः प्राकाराकृती रुचकद्वीपविभागकारितया स्थितः, अत एवं माण्डलिकपर्वतो मण्डलेन व्यवस्थितत्वात्, स च सहस्त्रमवगाढचतुरशीतिरुच्छित इति पञ्चाशीति; सहस्त्राणि सर्वागणेति ।
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