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________________ ६४ चउरासिइइमो समवायो : चौरासिवां समवाय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. चउरासीइं निरयावाससयसहस्सा चतुरशीतिः निरयावासशतसहस्राणि १. नरकावास चौरासी लाख' हैं । पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि । २. उसमे णं अरहा कोसलिए ऋषभः अर्हन् कौशलिकः चतुरशीति २. कौशलिक (कोशल देश में उत्पन्न) चउरासीइं पुत्वसयसहस्साई पूर्वशतसहस्राणि सर्वायुष्क पालयित्वा अर्हत् ऋषभ चौरासी लाख पूर्वो के सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे सिद्धः बुद्धः मुक्तः अन्तकृतः परिनिर्वृतः पूर्ण आयु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुड़े सव्व- सर्वदुःखप्रहीणः । मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा दुक्खप्पहीणे। सर्व दुःखों से रहित हुए। ३. एवं भरहो बाहुबली बंभी सुंदरी। एवं भरतः बाहुबली ब्राह्मी सुन्दरी। ३. इसी प्रकार भरत, बाहुबली, ब्राह्मी और सुन्दरी चौरासी-चौरासी लाख पूर्वो के पूर्ण आयु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वत हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए। ४. सेज्जंसे णं अरहा चउरासीइं श्रेयांसः अर्हन् चतुरशीति वर्षशतसह- ४. अर्हत् श्रेयांस चौरासी लाख वर्षों के वाससयसहस्साइं सव्वाउयं स्राणि सर्वायुष्कं पालयित्वा सिद्धः बुद्धः पूर्ण आयु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे मुक्तः अन्तकृतः परिनिर्वृतः मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे। सर्वदुःखप्रहीणः । तथा सर्व दुःखों से रहित हुए। ५. तिविठ्ठ णं वासुदेवे चउरासीइं त्रिपृष्ठः वासुदेवः चतुरशीति ५. वासुदेव त्रिपृष्ठ चौरासी लाख वर्षों के वाससयसहस्साई सव्वाउयं वर्षशतसहस्राणि सर्वायुष्कं पालयित्वा पूर्ण आयु का पालन कर अप्रतिष्ठान पालइत्ता अप्पइट्ठाणे नरए अप्रतिष्ठाने नरके नैरयिकत्वेन उपपन्नः। नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न नेरइयत्ताए उववण्णे। ६. सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देबराजस्य चतुरशीतिः ६. देवेन्द्र देवराज शक्र के चौरासी हजार चउरासीई सामाणियसाहस्सीओ सामानिकसाहस्यः प्रज्ञप्ताः । सोमानिक देव हैं। पण्णत्ताओ। ७. सम्वेवि गं बाहिरया मंदरा सर्वेऽपि बाह्याः मन्दराः चतुरशीति- ७. बाहर के सभी मन्दरपर्वत चौरासी चउरासीइं . चउरासीइं चतुरशीति योजनसहस्राणि चौरासी हजार योजन' ऊंचे हैं। जोयणसहस्साई उड्ढे उच्चत्तेणं ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्ताः। पण्णत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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