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________________ ८३ यासिइइमो समवा : तिरासिवां समवाय मूल संस्कृत छाया १. समणे भगवं महावीरे श्रमण भगवान् महावीरः द्वयशीतिबासीइराइदिएहि वीइक्कंतेहि रात्रिन्दिवेषु व्यतिक्रान्तेषु त्र्यशीतितमे तेयासीइमे राइदिए वट्टमाणे रात्रिन्दिवे वर्तमाने गर्भात् गर्भ संहृतः । भाओ भं साहरिए । २. सीयलस्स णं अरहओ तेसीति गणा तेसीति गहरा होत्था । ३. थेरे णं मंडियपुत्ते तेसीइं वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्खपहीणे । शीतलस्य अहंत: त्र्यशीतिः गणाः त्र्यशीतिः गणधराः आसन् । स्थविर: मण्डितपुत्रः त्र्यशीति वर्षाणि सर्वायुष्कं पालयित्वा सिद्धः बुद्धः मुक्तः अन्तकृतः परिनिवृतः सर्वदुःखप्रहीणः । ४. उसमे णं अरहा कोसलिए तेसीइं ऋषभ: अर्हन् कौशलिक : त्र्यशीति पुव्वसय सहस्साई अगारवास - पूर्वशतसहस्राणि मभावसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारअं पव्वइए । ५. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी भरतः राजा चातुरन्तचक्रवर्ती त्र्यशीति तेसीइं पुव्वसय सहस्साइं पूर्वशतसहस्राणि अगारमध्युष्य जिनः अगारमभावसित्ता जिणे जाए जातः केवली सर्वज्ञः सर्वभावदर्शी । केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी । Jain Education International अगारवासमध्युष्य मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजितः । टिप्पण १. तिरासी गण और तिरासी गणधर (तेसीति गणा तेसीति गणहरा ) क्ति में इनके इक्यासी गण और इक्यासी गणधर बतलाए गए हैं । २. तिरासी वर्ष के सर्व आयु (तेसोई वासाइं सव्वाउयं) हिन्दी अनुवाद १. श्रमण भगवान् महावीर का बयासी दिन-रात बीत जाने पर तथा तिरासिवें दिन-रात के वर्तने पर एक गर्भ से दूसरे गर्भ में संहरण किया गया। २. अर्हत् शीतल के तिरासी गण और तिरासी गणधर थे । ३. स्थविर मंडितपुत्र तिरासी वर्ष के सर्व आयु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए । ४. कौशलिक अर्हत् ऋषभ तिरासी लाख पूर्वी तक अगारवास में रहकर, मुंड होकर अगार अवस्था से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुए । For Private & Personal Use Only ४. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत तिरासी लाख पूर्वी तक अगारवास में रहकर जिन, केवली, सर्वज्ञ और सर्वभावदर्शी हुए । sage का गृहस्थ पर्याय ५३ वर्ष, छद्मस्थ पर्याय १४ वर्ष और केवली पर्याय १६ वर्ष का था । ३. तिरासी लाख पूर्वी तक (तेसीइं पुव्वसय सहस्साइं ) चक्रवर्ती भरत कुमार अवस्था में ७७ लाख पूर्व तथा चक्रवर्ती राजा के रूप में ६ लाख पूर्व तक रहे । १. प्रावश्यक नियुक्ति गा० २६७, अवचूर्णि प्रथम विभाग, पू२११ । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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