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बासीतिइमो समवायो : बयासिवां समवाय
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद १. जंबुद्दीवे दोवे बासीतं मंडलसयं जम्बूद्वीपे द्वीपे व्यशीतिः मण्डलशत १. जम्बूद्वीप द्वीप में एक सौ बयासी
जं सूरिए दुक्खुत्तो संकमित्ता णं यत् सूर्यः द्विःकृत्वः संक्रम्य चारं मंडल'--सूर्यमार्ग हैं। सूर्य उनमें दो चारं चरइ, तं जहा- चरति, तद्यथा-निष्कामश्च बार संक्रमण कर गति करता हैनिक्खममाणे य पविसमाणे य। प्रविशंश्च ।
जम्बूद्वीप से निष्क्रमण करता हुआ और
जम्बूद्वीप में प्रवेश करता हुआ। २. समणे भगवं महावीरे बासीए श्रमणः भगवान् महावीरः द्वयशीत्या २. श्रमण भगवान् महावीर का बयासी
राइदिएहिं वोइक्कतेहिं गब्भाओ रात्रिन्दिवेषु व्यतिक्रान्तेषु गर्भात् गर्भ दिन-रात बीत जाने पर एक गर्भ से गन्भं साहरिए। सहतः।
दूसरे गर्भ में संहरण किया गया। ३. महाहिमवंतस्स गंवासहरपव्वयस्स महाहिमवतः वर्षधरपर्वतस्य ३. महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर
उवरिल्लाओ चरिमंताओ उपरितनात् चरमान्तात् सौगन्धिकस्य के चरमान्त से सौगन्धिक कांड के नीचे सोगंधियस्स कंडस्स हेटिल्ले काण्डस्य अधस्तनं चरमान्तं, एतत् के चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर चरिमंते, एस णं बासीई द्वयशीति योजनशतानि अबाधया
बयासी सौ योजन' का है। जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे अन्तरं प्रज्ञप्तम् ।
पण्णत्ते। ४. एवं रुप्पिस्सवि। एवं रुक्मिणोऽपि।
४. रुक्मी वर्षधर पर्वत के ऊपर के चरमान्त से सौगन्धिक कांड के नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक अन्तर बयासी सौ योजन का है।
टिप्पण
१. एक सौ बयासी मंडल (बासीतं मंडलसयं)
सूर्य के गति करने के १८४ मंडल हैं। इनमें सर्वाभ्यन्तर और सव-बाह्य-मंडल में सूर्य एक-एक बार जाता है और शेष १८२ मंडलों में, जम्बूद्वीप में प्रवेश करता हुआ तथा उससे निष्क्रमण करता हुआ, दो-दो बार गति करता है।
जम्बुद्वीप के पैंसठ मंडल हैं। तो भी जम्बूद्वीप संबंधी सूर्य की गति का उल्लेख होने के कारण अन्य बाह्य-मंडलों का भी यहां उन्हीं में समावेश किया गया है। १. समवायर्यागवृत्ति, पन ८॥
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