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________________ एक्कासीइइमो समवायो : इक्यासिवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा नवनवमिका भिक्षुप्रतिमा एकाशीत्या १. नव-नवमिका भिक्षु-प्रतिमा इक्यासी एक्कासीइ राइंदिरहि चउहि य रात्रिन्दिवः चतुर्भिश्च पञ्चोत्तरैः दिन-रात की अवधि में ४०५ भिक्षापंचुत्तरेहि भिक्खासएहि अहासुत्तं भिक्षाशतैः यथासूत्रं यथाकल्पं यथामार्ग दत्तियों से सूत्र, कल्प, मार्ग और तथ्य अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं यथातथ्यं सम्यक् कायेन स्पृष्टा पालिता के अनुरूप, काया से सम्यक स्पृष्ट, सम्मं काएण फासिया पालिया शोधिता तीरिता कीर्तिता आज्ञया पालित, शोधित पारित, कीर्तित और सोहिया तोरिया किट्टिया आणाए आराधिता चापि भवति । आज्ञा से आराधित होती है। आराहिया यावि भवति। २. कुंथुस्स णं अरहओ एक्कासीति कुन्थोः अर्हतः एकाशीतिः मनःपर्यव- २. अर्हत् कुन्थु के इक्यासी सौ मनःपर्यवमणपज्जवनाणिसया होत्था। ज्ञानिशतानि आसन् । ज्ञानी थे। ३. विआहपण्णत्तोए एकासीति व्याख्याप्रज्ञप्त्यां एकाशीतिः ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति में इक्यासी महायुग्मशत' महाजुम्मसया पण्णत्ता। महायुग्मशतानि आसन् । टिप्पण १. इक्यासी महायुग्मशत (एकासीति महाजुम्मसया) वृत्तिकार के अनुसार 'शत' शब्द अध्ययनों का द्योतक है। उन अध्ययनों में कृतयुग्म आदि लक्षणवाली राशि विशेष का विवरण है। भगवती सूत्र के पैतीसवें से चालीसवें शतक तक महायुग्मों का वर्णन है। वहां उनका क्रम यह है१. एकेन्द्रिय के महायुग्मशत -१२ २, द्वीन्द्रिय के महायुग्मशत -१२ ३. त्रीन्द्रिय के महायुग्मशत -१२ ४. चतुरिन्द्रिय के महायुग्मशत ५. असन्नी पंचेन्द्रिय के महायुग्मशत -१२ ६. सन्नी पंचेन्द्रिय के महायुग्मशत - कुल योग १ १ समवायांगवृत्ति, पत्र ८३ : याख्याप्रज्ञप्त्यामेकाशीतिमहायुग्मशतानि प्रज्ञप्तानि, इह च शतशब्देनाध्ययनान्युज्यन्ते, तानि कृतयुग्मादिलक्षण राशिविशेष विचाररूपाणि प्रवान्तराध्ययनस्वभावानि तदवगमावगम्यानीति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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