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________________ [२९] अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति-प्र० १५४ पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति–प्र० १५५ नैरयिकों की वेदना-प्र० १७३ नैरयिकों का आहार-प्र० १७५ नैरयिकों का आयुष्य-बंध-प्र० १७७ नरकगति के उपपात और उद्वर्तना का विरह-काल-प्र० १७६, १८२ नैरयिक के आयुष्य के आकर्ष-प्र० १८४, १८५ नैरयिकों का संहनन-प्र० १८७ नैरयिकों का संस्थान-प्र० १६७ नैरयिकों का वेद-प्र० २१० १८. पर्वत वर्षधर वर्षधर पर्वतों की संख्या-७४ क्षुल्ल हिमवान् और शिखरी की जीवा की लम्बाई-२४१२ महाहिमवान् और रुक्मी की जीवा की लम्बाई-५३।२ महाहिमवान् और रुक्मी की जीवा की धनुःपृष्ठ की परिधि५७।५ महाहिमवान् और सौगन्धिक कांड-८२।३ रुक्मी आर सौगंधिक कांड-८२४ महाहिमवान और रुक्मी से सौगंधिक कांड-८७६,७ निषध और नीलवान् की जीवा की लम्बाई--९४१ क्षुल्ल हिमवान् और शिखरी की ऊंचाई-१००।७ महाहिमवान् और रुक्मी की ऊंचाई तथा गहराई ---प्र० ५ निषध और नीलवान् की ऊंचाई तथा गहराई-प्र०१७ सभी वर्षधर पर्वतों की ऊंचाई और चौड़ाई-प्र०२४ निषध से रत्नप्रभा पृथ्वी-प्र० ५३ नीलवान् से रत्नप्रभा पृथ्वी-प्र०५४ क्षुलहिमवत्कूट से क्षुल्ल हिमवान् पर्वत-प्र० ३२, ४१ शिखरीकूट से शिखरी पर्वत-प्र० ३३, ४२ निषधकूट से निषध पर्वत–प्र० ४६ नीलवत्कूट से नीलवान् पर्वत-प्र० ५० हरिकूट की ऊंचाई-प्र० ५६ मन्दर मूल की चौड़ाई- १०३ धरणीतल से शिखर तक की चौड़ाई-१११७ चूलिका के मूलभाग की चौड़ाई-१।६ विभिन्न नाम-१६।३ पृथ्वीतल पर परिधि-३१।२ दूसरे कांड की ऊंचाई-३८३ चूलिका की ऊंचाई-४०१२ मन्दर का चारों दिशाओं का व्यवधानात्मक अन्तर---४५।६ मन्दर से विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित द्वारों का व्यवधानात्मक अन्तर–५५।२,३ प्रथम कांड की ऊंचाई-६१।२ गौतम द्वीप का व्यवधानात्मक अन्तर-६७।३; ६६।२ बाहर के मन्दर पर्वतों की ऊंचाई-८४१७ आवास-पर्वतों का व्यवधानात्मक अन्तर-८७१-४;८८।३-६; ६२।३,४,६७१,२६८२,३ नाभिरूप रुचक प्रदेशों से चारों दिशाओं में मन्दर का व्यवधानात्मक अंतर-प्र०७० धरणीतल पर मन्दर की चौड़ाई-प्र०७५ आवास-पर्वत वेलंधर और अनुवेलंधर नागराजाओं के आवास-पर्वतों की ऊंचाई-१७४ जम्बूद्वीप से व्यवधानात्मक अन्तर--४२।२,३,४३।३,४ दोघंवैताढ्य ऊंचाई और गहराई–२५॥३ जम्बूद्वीप के दीर्घवैताढ्यों की संख्या-३४।३ मूल की चौड़ाई--५०१४ तमिस्रगुफाओं तथा खंडप्रपातगुफाओं की लम्बाई-५०१६ ऊंचाई-१००६ वृत्तवैताढ्य वृत्तवैताढ्य पर्वतों से सौगन्धिक कांड-६०५ परिमाण और संस्थान--प्र० ५८ दषिमुख आकार, चौड़ाई और ऊंचाई-६४।४ अञ्जन ऊंचाई-४८ मंडलिक रुचक मंडलिक पर्वत का पूर्ण परिमाण-८५३ उत्पात चमर के तिगिछिकूट उत्पात पर्वत की ऊंचाई-१७१७ बलि के रुचकेन्द्र उत्पात पर्वत की ऊंचाई-१७८ काञ्चनक शिखरतल पर चौड़ाई-५०७ ऊंचाई, गहराई और मूल में चौड़ाई-१००८ जम्बद्वीप के काञ्चनक पर्वतों की संख्या-प्र०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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