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________________ जीवनिकाय--६।२ जीवों के समूह--१४।१ पुद्गल परिमाण के प्रकार -- २२।६ १५. द्रह पद्मद्रह और पुंडरीकद्रह की लम्बाई-प्र०६४ महापद्मद्रह और महापुंडरीकद्रह की लम्बाई-प्र०६७ तिगिछद्रह और केसरीद्रह की लम्बाई-प्र० ६६ १६. नन्दनवन नन्दनवन से सौगंधिक कांड का अन्तर-८५४ नन्दनवन से पाण्डुवन का अन्तर-६८१ नन्दनवन के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त-६६।१,२ नन्दनवन के दक्षिणी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त-६६१,२ नन्दनवन के कूटों की ऊंचाई आदि-प्र० २६ बलकूट पर्वतों की ऊंचाई आदि-प्र०६० १७. नरक तथा नैरयिक पहली पृथ्वी स्थिति-१।२६,३०; २।८; ३३१३,४१०।५।१४६।६७१२; ८.१०, ६।१२; १०६,१०; १११८,१२।१२; १३१६; १४।८; १५।१०।१६।८% १७१११,१८१६; १९१६ २०१८; २१।५; २२१७; २३।५; २४१७; २५।१०; २६॥३; २७१७; २८१७; २६।१०; ३०183; ३११६; ३२१७,३३१५ रत्नप्रभा और चारणमुनि-१७१६ रत्नप्रभा के नरकावास-३०।८; ३४।६; ४१।२; ४३।२, ५५।५; ५८।१;७४।४ सीमंतक नरक का आयाम-विष्कंभ-४५२ रत्नप्रभा के अप्कायबहुल कांड की मोटाई-८०५ रत्नप्रभा के पंकबहुल कांड के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक अंतर–८४।१० रत्नप्रभा के अंजनकांड के नीचे के चरमान्त से वानमंतरों के भौमेय-विहारों के ऊपर के चरमान्त का व्यवधानात्मक अंतर--९६७ रत्नप्रभा के प्रथम कांड से वानमंतरों के भौमेय विहारों की दूरी-प्र० ४४ रत्नप्रभा से ऊपर के तारागण की दूरी-प्र० ५२ रत्नप्रभा के वनकांड के ऊपर के चरमान्त से लोहिताक्षकांड के नीचे के चरमान्त का व्यवधानात्मक अंतर-प्र०६८ रत्नप्रभा के रत्नकांड से पुलककांड का व्यवधानात्मक अन्तरप्र०७२ रत्नप्रभा के नरकावास और उनका क्षेत्र-प्र० १४१ रत्नप्रभा के नैरयिकों के उपपात और उद्वर्तन का विरह-काल प्र० १८३ दूसरी पृथ्वी स्थिति -१॥३१२६; ३३१४ नरकावासों की संख्या-२५४३६३६॥३,५५१५, ५९।१; ७४।४ दूसरी पृथ्वी से दूसरे धनोदधि का अन्तर--८६।३ तीसरी पृथ्वी स्थिति–३।१५; ४।११; ५।१५; ६।१०;७।१३ नरकावासों की संख्या-७४।४ चौथी पृथ्वी स्थिति-७।१४; ८।११।६।१३,१०१११,१२ नरकावासों की संख्या-३५।६; ३६।३; ४१।२; ४३।२ पांचवीं पृथ्वी स्थिति-६।१३; १११६; १३१०; १४।१०; १५।११; १६३६; १७.१२ धूमप्रभा की मोटाई-१८७ नरकावासों की संख्या-३४१६; ३६।३ ; ४३१२; ५८।१; ७४१४ छठी पृथ्वी स्थिति–१७१३; १८।१०; १९७; २०।६; २१।६; २२१८ नरकावासों की संख्या-३४१६, ३६।३; ४१।२; ७४१४ छठी पृथ्वी से घनोदधि का अन्तर --७६।३ सातवी पृथ्वी स्थिति-२२६; २३६; २४१८; २०११; २६।४; २७८ २८1८२६।११, ३०।१०, ३११७, ३२१८, ३३१६ नरकावासों की संख्या-३४१६,३६३,४११२,७४१४ अप्रतिष्ठान नरक का आयाम-विष्कंभ-११२३ नरकावास और उनका क्षेत्र-प्र० १४३ प्रकीर्ण नरकावासों की संख्या-८४११; प्र० १४२ नरयिकों के प्रकार-प्र० १४० नरकावासों का क्षेत्र और बाहल्य-प्र० १४२ नैरयिकों की स्थिति-प्र० १५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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