SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२७] वैमानिक देवों का संस्थान-प्र० २०८ वैमानिक देवों में वेद-प्र० २१४ भवनपति असुरकुमारों की स्थिति-१३।३२-३४; २।१०,११; ३३१६,४।१२; ५।१६, ६।११,७१५८।१२।६।१४; १०.१४,१६; १४१०; १२।१४; १३।११; १४।११; १५१२; १६।१० १७।१४; १८०११; १६।८, २०१० २११७; २२।१०; २३।७; २४१६; २५।१२; २६:५; २७६; २८९; २६।१२; ३०।११; ३११८; ३२२६; असुरकुमारावासों की संख्या-६४१२ असुरकुमारासों का वर्णन-प्र० १४४ असुरकुमारों के प्रासादावतंसकों की ऊंचाई-प्र०८ असुरकुमारों का संहनन-प्र० १८८ असुरकुमारों का संस्थान-प्र० १६८ असुरकुमारों में वेद -प्र० २११ चमर और बलि के अवतारिकालयन का आयाम-विष्कंभ-१६।६ राजधानी चमरचचा के द्वारों पर स्थित भीम-३३१२ चमर के भवनावास---३४१५ चमर और बलि की सुधर्मा सभा-३६।२; ५१।२,३ चमर के सामानिक देव-६४।३ नागराज भूतानन्द के भवनावास---४०१४ नागेन्द्र धरण के भवनावास–४४१३ नागकुमार देवों की आवास-संख्या-८४११२ वायुकुमारेन्द्र के भवनावास-४६।३ वेणुदेव (सुपर्णकुमारजातीय) के आवास की ऊंचाई-८।५ सुपर्णकुमार देवों के आवासों की संख्या-७२।१ विद्युत्कुमार देवों के आवासों की संख्या-७६१ द्वीपकुमार आदि देवों के आवासों की संख्या-७६।२ वायुकुमार देवों के भवनावास---६६२ परमाधामिकों के प्रकार--१५११ सभी भवनपति आवासों का वर्णन-प्र० १४५ सभी भवनपति देवों का संहनन-प्र० १८६ सभी भवनपति देवों का संस्थान--प्र० १६८ सभी भवनपति देवों में वेद-प्र० २११ वानमन्तर स्थिति-११३७; १०११८ वानमन्तर देवों के चैत्यवृक्ष की ऊंचाई-८३ वानमन्तर देवों के सुधर्मा सभा की ऊंचाई-६।१० वानमन्तर देवों के आवास-प्र० १४८ वानमन्तर देवों का संहनन–प्र० १६५ वानमन्तर देवों का संस्थान-प्र० २०८ वानमन्तर देवों में वेद-प्र०२१४ ज्योतिषिक स्थिति-२३८ ज्योतिषिक देवों के आवास-प्र० १४६ ज्योतिषिक देवों का संहनन-प्र० १६५ ज्योतिषिक देवों का संस्थान-प्र०२०८ ज्योतिषिक देवों में वेद-प्र० २१४ अन्यदेव स्थिति–११४३; २।२०७३।२१; ४११५; ५११६; ६।१४; ७।२०; ८।१५, ६।१७; १०।२२; ११।१३; १२।१७; १३।१४; १४११५; १५१५, १६।१३; १७११८, १८११५ १६।१२; २०।१४; २१।११ ; २२।१४ आन-प्राण-११४४ ; २२२१; ३।२२; ४११६; २२०; ६।१५; ७।२१; ८।१६।६।१८; १०।२३ ; ११:१४; १२।१८; १३।१५; १४:१६; १५।१६; १६।१४; १७।१६; १८।१६; १६।१३; २०११५; २१।२१, २२।१५ भोजन-इच्छा-११४५; २।२२; ३।२३४।१७; ५।२१; ६।१६; ७।२२; ८।१७; ९।१६; १०।२४; ११।१५; १२।१६, १३।१६; १४।१७; १५।१७, १६।१५; १७।२०१८१७१६।१४; २०११६; २१।१३; २२।१६ प्रकोण देवताओं के इन्द्र सहित स्थान -२४१३ देवेन्द्रों की संख्या-३२।२ उडुविमान का आयाम-विष्कंभ-४५॥३ देवों के भवधारणीय शरीर की अवगाहना-प्र० १६३ देवों के आयुष्य-बंध के प्रकार-प्र० १७८ देवगति के उपपात का विरह-काल-प्र० १८० देवगति की उद्वर्तना का विरह-काल-प्र० १८२ देवों के आयुष्य के आकर्ष-प्र० १८५ १४. द्रव्यवाद आत्मा-अनात्मा-११४,५ लोक-अलोक -१।१०,११ राशिद्वय-२।२,७११३५-१३८ अस्तिकाय-५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy