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________________ समवाश्रो २५४ ३६. गोणलक्षण- गाय के लक्षणों को जानने का विज्ञान । ३७. कुर्कुटलक्षण — कुक्कुट के लक्षणों को जानने का विज्ञान । ३८. छत्रलक्षण - छत्र के लक्षणों को जानने का विज्ञान | ३६. दंडलक्षण - डंडे के लक्षणों - शुभ-अशुभ को जानने का विज्ञान । ४०. असिलक्षण -- तलवार के लक्षणों - शुभ-अशुभ को जानने का विज्ञान । ४१. मणिलक्षण - रत्नपरीक्षा के ग्रन्थ में उक्त मणि के दोष गुण को जानने का विज्ञान । ४२. काकणी - चक्रवर्ती के काकणी रत्न के लक्षणों को जानने का विज्ञान । ४३. वास्तुविधा -- वास्तुशास्त्र प्रसिद्ध गृहभूमि के गुण-दोष को जानने का विज्ञान । ४४. स्कन्धावारमान सेना परिमाण का विज्ञान । ४५. नगरमान नगर निर्माण का विज्ञान । ४६. चार - ग्रहगति विज्ञान | ४७. प्रतिचार - ग्रहों की प्रतिकूल गति को जानने का विज्ञान अथवा रोग के प्रतिकार का विज्ञान । ४८. व्यूह - व्यूह रचना का विज्ञान । ४६. प्रतिव्यूह - शत्रुओं की व्यूह रचना को भंग करने का विज्ञान । ५०. चक्रव्यूह - चक्र के आकार की सैन्य रचना के निर्माण का विज्ञान | ५१. गरुडव्यूह - गरुड के आकार की सैन्य रचना के निर्माण का विज्ञान । ५२. शकटव्यूह - शकट के आकार की सैन्य रचना के निर्माण का विज्ञान । ५३. युद्ध - कुक्कुट, बैल आदि की तरह लड़ने के लिए योद्धाओं का दौड़ना । ५४. नियुद्ध - मल्लयुद्ध का विज्ञान । ५५. युद्धातियुद्ध - महायुद्ध का विज्ञान । ५६. दृष्टियुद्ध – शत्रु - योद्धाओं के साथ आंखों को निर्निमेष रखकर लड़ने का विज्ञान । ५७. मुष्टियुद्ध-मुट्ठियों से लड़ने का विज्ञान । ५८. बाहूयुद्ध — भुजाओं से लड़ने का विज्ञान, परस्पर एक-दूसरे को पकड़ने की इच्छा से भुजाओं को फैलाकर दौड़ना । ५६. लतायुद्ध - जैसे लतावृक्ष के मूल से ऊपर तक उसे आवेष्टित कर लेती है, वैसे ही योद्धा अपने प्रतिद्वन्दी के शरीर को गहरा आवेष्टित कर, उसे भूमि पर गिरा देने का विज्ञान । ६०. ईषुशास्त्र - नागबाण आदि दिव्य अस्त्र आदि के प्रयोग का विज्ञान । ६१. त्सरुप्रवाद - खड़ग - शिक्षा शास्त्र । ६२. धनुर्वेद - धनुःशास्त्र । ६३. हिरण्यपाक -- चांदी - निर्माण का विज्ञान । ६४. सुवर्णपाक स्वर्ण निर्माण का विज्ञान । ६५. सूत्रखेल - सूत्रक्रीड़ा का विज्ञान । ६६. वस्त्रखेल --- वस्त्रक्रीड़ा का विज्ञान । समवाय ७२ : टिप्पण ६७. नालिका खेल - नली से पाशा डालकर द्यूत खेलने का विज्ञान । ६८. पत्रच्छेद्य - एक सौ आठ पत्रों में से किसी विवक्षित पत्र को बाण से छेदने का हस्त कौशल सिखाने वाला विज्ञान । ६६. कच्छेद्य-कट की भांति क्रमशः वस्तु भंग करने का विज्ञान । ७०. सजीव - मृत धातु को सजीव करना उसको मौलिक रूप में लाने का विज्ञान । ७१. निर्जीव-स्वर्ण आदि धातुओं को मारने का विज्ञान, पारद को मूच्छित करने का विज्ञान । ७२. शकुनरुत --- वसन्तराज आदि शकुन शास्त्रों में उक्त विज्ञान ।' समवायांगवृत्ति पत्र ७९ में इन बहत्तर कलाओं की विशेष व्याख्या नहीं है। वहां केवल प्रथम छह कलाओं का अर्थबोध कराया गया है । वृत्तिकार ने नाट्यकला के लिए 'भरतशास्त्र' गीतकला के लिए 'विशाखिलशास्त्र' तथा शेष कलाओं के १. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति २ / ६४, वृत्ति पत्र ११७- १३९ । Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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