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________________ ३७ सत्ततीसइमो समवाओ : सैंतीसवां समवाय संस्कृत छाया १. कुंथुस्स णं अरहओ सत्ततीसं गणा, कुन्थोः अर्हतः सप्तत्रिंशद् गणाः सत्ततीसं गणहरा होत्था। सप्तत्रिंशद् गणधराः आसन् । हिन्दी अनुवाद १. अर्हत् कुन्थु के सैंतीस गण और सैंतीस गणधर थे। २. हेमवय-हेरण्णवइयाओ णं जीवाओ हैमवत-हैरण्यवत्यौ जीवे सप्तत्रिंशद्- सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणसहस्साई सप्तत्रिंशद् योजनसहस्राणि षट् च छच्च चोवत्तरे जोयणसए चतुःसप्तति योजनशतं षोडशकैकोनसोलसयएगूवीसइभाए जोयणस्स विंशतिभागं योजनस्य किञ्चिद किंचिविसेसूणाओ आयामेणं विशेषोने आयामेन प्रज्ञप्ते। पण्णत्ताओ। २. हैमवत और हैरण्यवत की प्रत्येक जीवा की लम्बाई ३७६७४१६ योजन से कुछ विशेष-न्यून है। १९ ३. सव्वासु णं विजय-वेजयंत-जयंत- सर्वासु विजय-वैजयन्त-जयन्त- अपराजियासु रायहाणीसु पागारा अपराजितासु राजधानीषु प्राकाराः सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणाणि सप्तत्रिंशत-सप्तत्रिंशद योजनानि उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्ताः। ३. विजय, वैजयन्त, जयंत और अपराजित-इन सभी राजधानियों के प्राकार सैंतीस-सैंतीस योजन ऊंचे हैं। ४. खुड्डियाए णं विमाणप्पविभत्तीए क्षुद्रिकायां विमानप्रविभक्तौ प्रथमे वर्ग ४. क्षुद्रिकाविमानप्रविभक्ति' के प्रथम वर्ग पढमे वग्गे सत्ततीसं उद्देसणकाला सप्तत्रिंशद् उद्देशनकालाः प्रज्ञप्ताः। में सैंतीस उद्देशन-काल हैं। पण्णत्ता। ५. कत्तियबहुलसत्तमीए णं सुरिए कार्तिकबहुलसप्तम्यां सूर्यः सप्तत्रिंशद् सत्ततीसंगुलियं पोर्रािसच्छायं अंगुलिकां पौरुषीच्छायां निर्वहँ चारं निव्वत्तइत्ता णं चारं चरइ। चरति। ५. कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैंतीस अंगुल प्रमाण प्रहर की छाया' निष्पन्न कर गति करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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