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टिप्पण
१. कुन्यु गणधर ( कुंथुस्स गणहरा)
प्रस्तुत सूत्र के प्रसंग में वृत्तिकार का कथन है कि 'आवश्यक में अहं कुन्थु के तैतीस गणधर बतलाए हैं, उसे मतान्तर मानना चाहिए ।' किन्तु आवश्यक नियुक्ति में जो पाठ आज प्राप्त है उसमें कुन्थु के पैंतीस गणों का उल्लेख हुआ है । के भगवान् महावीर के अतिरिक्त सभी तीर्थंकरों के जितने गण थे, उतने ही गणधर थे । अतः आवश्यक के अनुसार कुन्थु पैंतीस गणधर सिद्ध होते हैं ।'
२. विजयराजधानियों (विजय रायहाणीसु )
जम्बूद्वीप के पूर्व आदि दिशाओं में विजय, वैजयंत आदि चार द्वार हैं। उन द्वारों के नायकों तथा राजधानियों के भी ये ही नाम हैं । वे राजधानियां यहां से दूर असंख्यातवें जम्बू नामक द्वीप में है ।'
३. क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति ( खुड्डियाए णं विमाणव्यविभत्तीए )
यह कालिक श्रुत है । नंदी ( सूत्र ७७) में भी इसका उल्लेख है ।
४. प्रहर की छाया ( पोरिसिच्छायं)
यदि चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन प्रहर की छत्तीस अंगुल प्रमाण छाया होती है तो वैशाख कृष्णा सप्तमी के दिन ( सात दिन में एक अंगुल की वृद्धि होने से ) सैंतीस अंगुल का प्रहर होगा। इसी प्रकार आश्विन पूर्णिमा को छत्तीस अंगुल का प्रहर होगा और कार्तिक कृष्णा सप्तमी को सैंतीस अंगुल का ।
१. समवायांगवृत्ति, पक्ष ११:
प्रावश्यकेतुतयस्तद् श्रूयते इति मतान्तरम् ।
२. प्रावश्यक निर्युक्ति, गा० २६७, अवचूर्णि प्रथम विभाग, पु० २११।
३. समवायांगवृति पत्र ६१ ।
४. वही, पत्र ६१ ।
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