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समवाश्रो
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४. औत्पातिक व्याधियां (उप्पाइया वाही)
उत्पात का अर्थ है -- अनिष्टसूचक रुधिरवृष्टि आदि । इनके द्वारा अनेक अनिष्ट घटित होते हैं । वे औत्पातिक कहलाते हैं । व्याधि का अर्थ है ज्वर आदि । वृत्तिकार ने इस प्रकार दोनों को भिन्न माना है ।
समवाय ३४ : टिप्पण
५. चौतीस तीर्थङ्कर (चोत्तीसं तित्थंकरा )
जम्बूद्वीप में चौतीस विजय हैं- महाविदेह में बत्तीस तथा भरत क्षेत्र में एक और ऐरवत क्षेत्र में एक । इन चौतीस विजयों में एक-एक तीर्थङ्कर हों तो उत्कृष्टतः चौतीस हो सकते हैं। चार तीर्थङ्कर ही एक साथ हो सकते हैं। उनकी संगति इस प्रकार है -- मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम शिलातल पर दो-दो सिंहासन होते हैं । उन चार सिंहासनों पर चार तीर्थकरों का ही एक साथ अभिषेक हो सकता है। इसलिए मेरु पर्वत की पूर्व दिशावर्ती विजयों में दो तीर्थङ्कर तथा पश्चिम दिशावर्ती विजयों में दो तीर्थङ्कर ही होंगे। उस समय मेरु पर्वत के दक्षिण और उत्तर दिशा में स्थित भरत और ऐरवत क्षेत्र दिन होता है । तीर्थङ्कर दिन में जन्म नहीं लेते। उनका जन्म आधी रात के समय ही होता है । इसलिए उन दोनों क्षेत्रों में उस समय तीर्थङ्करों की उत्पत्ति नहीं होती।
६. चौतीस लाख नरकावास हैं (चोत्तीसं निरयावाससयसहस्सा )
पहली पृथ्वी में तीस लाख, पांचवीं में तीन लाख, छठी में एक लाख में पांच कम और सातवीं में पांच नरकवास हैं ।
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१. समवाम्रो ३४ / २ । २. समवायांगवृत्ति, पन ५१ :
उक्कोसपर चोत्तीसं तिगरा समुप्यति त्तिसमुत्पद्यन्ते सम्भवन्तीत्यर्थः न त्वेकसमये जायन्ते चतुर्णामेवैकदा जन्मसम्भवात् तथाहि मेरी पूर्वापरशिलातलयोद्वे द्वे सिहासने भवतोऽतो द्वौ द्वावेवाभिषिच्येते तो द्वयोर्द्वयोरेव जन्मेति, दक्षिणोत्तरयोस्तु क्षेतयोस्तदानीं दिवससद्भावात् न भरते रावतयोजिनोत्पत्तिरर्द्धन एव जिनोत्पत्तेरिति ।
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