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समवाय ३३ : सू०१
समवानो
२५. सेहे राइणियस्स कहं शैक्षः रात्निकस्य कथां कथयतः न कहेमाणस्स 'नो सुमरसी'ति वत्ता स्मरसीति वक्ता भवति–आशातना भवति–आसायणा सेहस्स। शैक्षस्य ।
२५. शैक्ष रानिक मुनि को धर्म-कथा करते समय, 'आपको यह याद नहीं हैं'-इस प्रकार कहता है, यह शैक्षकृत आशातना है।
२६. शैक्ष रानिक मुनि द्वारा की जा रही धर्म-कथा का विच्छेद करता है, यह शैक्षकृत आशातना है।
२६. सेहे राइणियस्स कहं शैक्षः रात्निकस्य कथां कथयतः कथां कहेमाणस्स कहं अच्छिदित्ता आछेत्ता भवति-आशातना शैक्षस्य । भवति–आसायणा सेहस्स। २७. सेहे राइणियस्स कहं शैक्षः रात्निकस्य कथां कथयतः पर्षदं
स परिसं भेत्ता भवति- भत्ता भवति-आशातना शैक्षस्य । आसायणा सेहस्स। २८. सेहे राइणियस्स कहं शैक्षः रात्निकस्य कथां कथयतः तस्यां कमाणस तीसे परिसाए परिषदि अनुत्थितायां अभिन्नायां । अणदिताए अभिन्नाए अवच्छिन्नाए अव्यच्छिन्नायां अव्याकृतायां द्वितीयमपि अव्वोगडाए दोच्चं पि तमेव कहं तामेव कथां कथयिता भवतिकहित्ता भवति-आसायणा आशातना शैक्षस्य । सेहस्स।
२७. रात्निक मुनि जब धर्म-कथा करते हैं, तब शैक्ष उस समय परिषद् में भेद डालता है, यह शैक्ष कृत आशातना है।
२८. रानिक मुनि धर्म-कथा कर रहे हैं, परिषद् अभी तक उठी नहीं है, भंग नहीं हुई है, व्युच्छिन्न नहीं हुई है, अविभक्त नहीं हुई है- वैसे ही व्यवस्थित है, शैक्ष उस परिषद् में दूसरी बार वही धर्म-कथा करता है, यह शैक्षकृत आशातना है। २६. शैक्ष रालिक के शय्या, संस्तारक का पैरों से संघटन कर, उन्हें अनुज्ञापित नहीं करता, यह शैक्षकृत आशातना है।
२६. सेहे राइणियस्स सेज्जा- शैक्षः रात्निकस्य शय्या-संस्तारकं पादेन संथारगं पाएणं संघट्टित्ता, हत्थेणं संघट्य, हस्तेन अननुज्ञाप्य गच्छतिअणणण्णवेत्ता गच्छति-आसा- आशातना शैक्षस्य । यणा सेहस्स। ३०. सेहे राइणियस्स सेज्जा- शैक्षः रात्निकस्य शय्या-संस्तारके स्थाता। संथारए चिद्वित्ता वा निसीइत्ता वा निषत्ता वा त्वग्वर्तयिता वा वा तुयट्टित्ता वा भवइ–आसायणा भवति-आशातना शैक्षस्य । सेहस्स। ३१. सोहे राइणियस्स उच्चासणे शैक्षः रात्निकस्य उच्चासने स्थाता वा चिद्वित्ता वा निसीइत्ता वा निषत्ता वा त्वगवर्तयिता वा भवतितुट्टित्ता वा भवति–आसायणा आशातना शैक्षस्य। सहस्स।
३०. शैक्ष रानिक मुनि के शय्या, संस्तारक पर खड़ा होता है, बैठता है या सोता है, यह शैक्षकृत आशातना
३१. शैक्ष रानिक मुनि से ऊंचे आसन पर खड़ा रहता है, बैठता है या सोता है, यह शैक्षकृत आशातना है।
३२. शैक्ष रानिक मुनि के बराबर आसन पर खड़ा रहता है, बैठता है या सोता है, यह शैक्षकृत आशातना है ।
३२. सेहे राइणियस्स समासणे शैक्षः रात्निकस्य समासने स्थाता वा चिद्वित्ता वा निसीइत्ता वा निषत्ता वा त्वगवर्तयिता वा भवतितुयट्टित्ता वा भवति-आसायणा आशातना शैक्षस्य । सेहस्स। ३३. सेहे राइणियस्स आलव- शैक्षः रात्निकस्य आलपतस्तत्रगत एव माणस्स तत्थगते चिय पडिसुणित्ता प्रतिश्रोता भवति–आशातना शैक्षस्य। भवइ-आसायणा सेहस्स।
३३. रात्लिक भुनि के कुछ कहने पर शैक्ष अपने आसन पर बैठे-बैठे ही उसे स्वीकार करता है (या प्रत्युत्तर देता है), यह शैक्षकृत आशातना है।
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